________________
कारण हो शिव पंथ के, उद्धारण जग कर। कारज सारन जीव के, हो तुमही शिव भूप ॥ उत्तम जन बहु जगतसैं, तारे तुम भगवान । अधम न तारो एक मैं, तारो हे जग जान ॥ आयो तुम पद पूजने, भजन करन के चार । राखो भव भजन में, जब लग जग भग्माघ । भजत करत संसारसुख, भजन करतनिर्वान । भजन बिना नर जगतमें, है तिजं च ममान ।। भजन करत जग उद्धरे, सिंह नवल फाप मूग । गण धरहो वृषभेशक, मुक्ति मय अत्रचूर ॥ निर अंजन अंजन भय, गज किगतमय सिद्ध। स्वान जटी पन्नगतिरे, तिनकी कथा प्रग्निन्छ । कहां पशूपर जायनर, कहां मुक्ति का धाम | तृ भी मृरख मजनकर, मुम्न में टीन चाम ।। या जरा विषम विदयाम बंधु मजन भगवान । सार्थ वाह निवृत्तिका, लग्नि निश्चयवान ।। भजनवाद जिनमक्ति विन, मनियाद बिन मात्र । भाव बाद अबगाढ़ विन गाद बाद बिन बाय॥ धन्य महात वन बड़ी धन्य दिवग्न गिनना। तमनग्न कारण जुट्टो धाजिनामजनम्नमाal रही नासली म्मुत्री. रहो मदा मत संग। जाते श्रीजिन भजन में प्रति दिन हाय उमंग ! वन्य पुन मन मिले, मयं सहायक श्रमं । मजन व भगवन का, मात्र सरस्वति धर्म