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___२४] महाचंद जैन भजनावली ।
क्षुधा तृश सय द्वष मोह मद स्वेद खेद निरबारा है। जन्म जरा अर मरण अरतिकरि रहित अये भव पारा है॥ ओर० ॥२॥ रोग शोक विस्मय निद्रा फुति चिन्ता राग विदारा है। यह
अष्टादश दोष तिनं करि रहित निरंजन कारा है। ओर० ॥ ३॥ स्वेद रहित मलमूत्र रहित
तनु रुधिर दूध प्राकारा है। वज वृषसनाराच सं- हनन सम चतुर ततु धारा है॥ोर० ॥ ४॥ रूप अनंत सुगंध सुलक्षण मंड अतुल वल भारा है । सवकों प्रिय हित मधुर वचन यह दश अतिशय जन्मारा है । ओर०॥५॥ वृक्ष अशोक चमर भामंडल छत्र सिंघासण न्यारा है। पुउपवृष्टि हुन्दुभि दिव्यध्वनी प्रातिहार्य अठकारा हैं। ओर० ॥ ६॥ जोजन शत दुर्भिक्ष गगन चल प्राणी बधकौं टारा है। निरुपसर्ग निहार चतुर्मुख सब विद्या आधारा हैं ॥ ओर० ॥ ७॥ छाया रहित शरीर फटिक सम नयन पलक नहिं डारा है। बढ़े नही नख केश ये केवल उपजे