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बुधजन विलास तुम सब ज्ञायक मोहि उबारो, बुधजनको अपनो करिकै ।। मो० ॥३॥
(५३) राग सारंग। हम शरन गयौ जिन चरनको हम टेक अत्र औरन की मान न मेरे, डर हुँ रह्यो नहिं मरनको ॥ हम० ॥१॥ भरम विनाशन तत्वप्रकाशन, भवदधि तारन तरनको। सुरपति नरपति ध्यान धरत वर, करि निश्चय दुग्ख हरनको हमा२॥ या प्रसाद ज्ञायक निज मान्यो, जान्यौ तन जड़ परनको । निश्चय सिधमो पै कष:यने, पात्र भयो दुख भरनको ॥हम०॥३॥ प्रभुबिन और नहीं या जगम, मेरे हितके करन की। बुधजनकी अरदास यही है, हर संकटं भर फिरनको ।। हम ॥४॥
(५४) मैं तेरा चरा,अंरज सुनो प्रभु मेग ॥ मैं॥ टैक ।। अष्टकन मोहि घेरि रहे है, दुख दें है वह तेरा । मैं ॥१॥ दीनदयाल दीन मो लसिके,