________________
४] महाचंद जैन भजनावली । ॥ चिदा० ॥ १॥ भाग समान जीवना जोविन परबत नाला कारी । धन पद रंज समान सबन को जात न लागे वारी ॥ चिदा० ॥ २॥ जूवा मांस मद्य अरु वेश्या हिंसा चौरी जारी। सप्त व्यसनमें रक्त होयके निज कुल कीनी कारी ॥ चिदा० ॥ ३ ॥ पुन्य पाप दोनों लार चलत हैं यह निश्चय उर धारी। धर्म द्रव्य तोय स्वर्ग पठावै पाप नर्कमें डारी ॥४॥ आतम रूप निहार भजो जिन धर्म मुक्ति सुखकारी। बुध महाचन्द्र जानि यह निश्चय जिनवर नाम सम्हारी ॥५॥
(५) सोरठ। जीव निज रस राचन खोयो, योतो दोष नहीं करमनको ॥ जीव०॥ टेर॥ पुद्गल भिन्न स्वरूप आपणं सिद्ध समान न जोयो ॥ जीव ॥१॥ विषयनके संग रक्त होयके कुमती सेजां सोयो। मात तात नारी सुत कारण घर घर डोलत रोयो ॥ जीव ॥२॥ रूप रंग नव जोविन परकी नारी देख रमोयो । परको निन्दा आप बड़ाई करता