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महाचंद जैन भजनावली। द्वार ॥ बधाई० ॥ ५ ॥ आधि व्याधि सबही तजे हैं तज दिये घरके काज। बालक छोड़े रोवते हैं देखनको महाराज ॥ बधाई०॥६॥ जाचक जन बह पोषिये हैं दान देय राजेन्द्र । दीअशीस यों जिनबधो ज्यों दोयजको महाचंद्र ॥बधाई ० ॥७॥
(२) बधाई। सिद्धारथ राजा दरबारै बटत बधाई रंग भरी हो॥ टेक ॥ त्रिसला देबीनै सुतजायो वर्द्धमान जिनराज बरी हो । कुंडलपुरमें घर घर द्वारे होय रही आनंद घरी हो ॥ सिद्धा०॥१॥ रत्ननकी वर्षाको होते पन्द्रह मास भये सगरी हो । आज गगन दिश निरमल दीखत पुष्प बृष्टि गंधोद झरी हो ॥ सिद्धा० ॥ २॥ जन्मत जिनके जग सुख पाया दूरि गये सब दुक्ख टरी हो । अन्तर मुहूर्त नारकी सुखिया ऐसो अतिशय जन्म धरी हो ॥ सिद्धा० ॥३॥ दान देय नृपने बहुतेरो जाचिक जन मन हर्ष करी हो। ऐसे बीर जिनेश्वर चरणों बुध महाचंद्र जु सीस धरी हो ॥४॥