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महाचंद जैन भजनावली। जन्म विगोयो । जीव० ॥३॥ धर्म कल्पतरु शिव फल दायक ताको जरतें न टोयो। तिसकी ठोड महाफल चाखन पाप बमूल ज्यों बोयो ॥ ४ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्म सेयके पाप भार बहु ढोयो। बुध महाचन्द्र कहे सुन प्रानी अंतर मन नहीं धोयो ॥ जीव०॥५॥
निज घर नाय पिछान्यारे, मोह उदय होने तें मिथ्या भर्म भुलानारे ॥ निज०॥ टैर ॥ तूंतो नित्य अनादि अरूपी सिद्ध समानारे। पुद्गल जड़में राचि भयो तं मूखे प्रधाना रे ॥निज०॥१॥ तन धन जोबिन पुत्र बधू आदिक निज मानारे। यह सबजाय रहनके नांई समझ सियानारे ॥ निज० ॥२॥ बालपने लड़कन संग जोबिन त्रिया जवानारे। वृद्धभयो सब सुधिगई अब धर्म भुलानारे ॥ निज ॥ ३॥ गई गई अबराख रही तू समझ सियानारे। बुद्ध महाचंद्र बिचारिर जिन पद नित्य रमानारे ॥ निजधर ॥ ४॥