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बुधजन विलास ॥१॥ इष्ट अनिष्ट कल्पना छोड़ो, मुख दुख एक हि भावो जी। पर वस्तु नमों ममत निवारी निज प्रातम लौ ल्यावो जी॥ ऐमा० ॥२॥ माल नदेहकीसंगतिछूटे, जामन मरन मिटावो जी । शुद्ध चिदानंद बुधजन है के, शिवपुरबसावो जी ॥ ऐमा०॥३॥
(५६) राग-खंमाच। मेरा सांई तो मो में नाहीं न्यारा, जानें सो जाननहाग । मेरा० ॥टेक ॥ पहले खद सह्यो विन जानें, अब सुख अपरंपारा ॥ मेग०॥१॥ अनंत चतुष्टय-धारक ज्ञायक.गुनपरजेंद्रामारा जैसा राजत गंधकुटी मैं, तैसा मुझमैं म्हाग॥ मेरा० ॥२॥हित अनहित मम पर विकलपत, करम बंध भये भाग। ताहि उदय गति गति सुख दुख में, भाव किये दुखकाग॥ मेरा० ॥३॥ काललबधि जिनआगममेती,संशयभरमावदारा। बुधजन जान करावन करता, हौं ही एक हमारा ॥ मेरा० ॥ ४ ॥