________________
[ १७ ]
नहिं० ॥ १ ॥ पाय चिन्तामन रतन शठ, छिपत उदधि मंकार | अंध हाथ बढेर आई, तजत ताहि गंवार | नहिं ० २ | कबहुँ नरक तिरजंच कबहुँ, | कबहुँ सुरगविहार | जगतमहिं चिरकाल भमियो दुर्लभ नर अवतार । नहिं ० ३ । पाय अम्रत पांय धोवै, कहत सुगुरु पुकार । तजो विषय कषाय द्यानत, ज्यों लहो भवपार ॥
( ३२ )
तू तो समझ समझ रे ! भाई ॥ टेक ॥ निशिदिन विषय भोग लपटाना, धरम वचन न सुहाई ॥ तू तो० ॥ १॥ कर मनका लै आसन मायो, वाहिज लोक रिझाई । कहा भयो बक ध्यान धरे तैं, जो मन थिर न रहाई ॥ तू तो० ॥२॥ मास मास उपवास कियेतैं, काया बहुत सुखाई । क्रोध मान छल लोभ न जीत्या, कारज कौन सराई ॥ ॥ तू तो० ॥३॥ मन वच काय जोग थिर करकै, त्यागो विषयकषाई । द्यानत सुरग मोख सुखदाई, सदगुरु सीख बताई ॥ तू तो ॥४०॥
( ३३ )
घट में परमातम ध्याइये हो, परम धरम धन