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वुधजन विलास
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वान हरिने, कीनी यांख हजार । वैगगी मुनिवर हू लखिकै ल्यावत हरप अपार निरखे ||२|| भरम गयो तत्वारथ पायो, आ. वन ही दरवार | बुधजन रचन शरन गहि जांचन, नहिं जाऊं परद्वार || निरखे० ॥ ३ ॥
३१ राग- बिलाबल धीमो तेताला ।
नरभव पाय फेरि दुख
भरना, ऐमा वाज
न करना हो । नरभव० ॥ टेक ॥ नाहक ममत ठनि पुलों, करमजाल क्यौं परना हो ॥ नग्भा० ॥ १ ॥ यह तो जड़ तू ज्ञान रूपी, तिल तुष ज्यौं गुरु वरना हो। गंग दोष तजि भजि समताक, कर्म साथ के हरना हा ॥ नरभव० ।। २ ।। यो भव पाय विषय - सुख सेना, गज चढ़ ईंधन ढोना हो । बुधजन समुझि सेय जिनवर पद, ज्यौं भवसागर तरना हो || नरभव० ॥ ३ ॥
३२- गग विलाल इकताली ।
साग्द ! तुम परसादतें, श्रानंद उर याया ॥