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बुधजन विलास
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पशुगतिमैं ऊाज्यों, पीठ स्ह्यौ अतिभार ॥ प्रभू जी० ॥ २ ॥ प्रभूजी विषय मगन में सुर भयो, जात न जान्यौ काल ॥ प्रभू जी ॥३॥ प्रभु जी नरभव कुल श्रावक लह्यौ, श्राया तुम दरवार ॥ प्रभु जी० || ४ || प्रभृ जी, भव भरमन बुधजनतनों, मेटौ करि उपगार ॥ प्रभू जी० ॥ ५ ॥
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३८ राग- आसावरी
जगतमैं होनहार सो होवै, सुर नृप नाहिं मिटावै ॥ जगत० ॥ टेक ॥ श्रादिनाथसेकौं भोजन में, अन्तराय उपजावै । पारसप्रभु ध्यान लीन लाख. कमठ मेघ बरसावे || जगत• ॥१॥ लखमण से संग भ्राता जाके, सीता राम गमावै प्रतिनारायण रावण सेकी, हनुमत लंक जरावें । जगत० ॥ २ ॥ जैसों कमात्रै तैमो ही पालै यों बुधजन समझावै । आप आप आप कमाव क्यौं प द्रव्य कमरे || जगत० ॥ ३ ॥
३६ राग - आसावरी जलद तेताली ।
आगे कहा करसी भैया, ग्राजासी जब