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________________ बुधजन विलास २१ पशुगतिमैं ऊाज्यों, पीठ स्ह्यौ अतिभार ॥ प्रभू जी० ॥ २ ॥ प्रभूजी विषय मगन में सुर भयो, जात न जान्यौ काल ॥ प्रभू जी ॥३॥ प्रभु जी नरभव कुल श्रावक लह्यौ, श्राया तुम दरवार ॥ प्रभु जी० || ४ || प्रभृ जी, भव भरमन बुधजनतनों, मेटौ करि उपगार ॥ प्रभू जी० ॥ ५ ॥ " ३८ राग- आसावरी जगतमैं होनहार सो होवै, सुर नृप नाहिं मिटावै ॥ जगत० ॥ टेक ॥ श्रादिनाथसेकौं भोजन में, अन्तराय उपजावै । पारसप्रभु ध्यान लीन लाख. कमठ मेघ बरसावे || जगत• ॥१॥ लखमण से संग भ्राता जाके, सीता राम गमावै प्रतिनारायण रावण सेकी, हनुमत लंक जरावें । जगत० ॥ २ ॥ जैसों कमात्रै तैमो ही पालै यों बुधजन समझावै । आप आप आप कमाव क्यौं प द्रव्य कमरे || जगत० ॥ ३ ॥ ३६ राग - आसावरी जलद तेताली । आगे कहा करसी भैया, ग्राजासी जब
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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