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________________ wuuuuuuu ___ बुधजन विलास जम लै जासी सब रह जामी. संग जामी पुरु पापो रे । तू. २ ॥ जग स्वारथ को कोइ न तेरा, यह निह उर था। बुध जन ममत मिटावो मनने, करि मुख श्राजिनजापारे ।। तू ॥३॥ ___३६ राग-असावरी जोगिया ताल धीमो तेतालो। थे ही माने तारो जा, प्रभुजो कोई न ह. मारो॥थे ही० ॥ टेक ॥ हूं एकाकि अनादि कालते, दुख पावन हू भागे जी ।। थे ही० ॥१॥ बिन मतलबको तुम ही स्वामी, मतलबको मंसागे। जग जन मिलि मोहि जगमै राखें तू ही काढनहागे ॥ थे ही० ॥ २ ॥ बुधजनक अपगध मिटावो, शरन गह्यो छै थागे भवदधिमाहीं डूबत मोशे, कर गहि श्राप निवागं थे ही० ॥३॥ ___ १७ राग-असावरी भांझ, ताल धीमो एकताले। प्रभू जो अरज मरी उस धो ।। प्रभू जी० टेक॥ प्रभू जी नरक निगोधाम रल्या. पायो दुःख अपार ।। प्रभू जी० ।। १ ।। प्रभू जी, हूं
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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