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बुधजन विलास ।। ३ ।। पर अपनावै सो दुख पावै, बुधजन ऐमें गांव हैं। परको त्यागि श्राप थिर तिह, सो अविचल सुख पावै है ।। गुरु०॥४॥
___३४ गग-असावरी। __ अरज झारी मानो जी, याही मारी मानो, भंवदधि हो तारना मारा जी ।।अरज०॥ टंक पतितउधारक पतित पुकारै, अपनों विरद पिछानो ॥ रज० ॥१॥ मोह मंगर मछ दुख दावानल, जनम मरन जल जानो।गति गति भ्रनने भवरमैं डूबत, हाथ पकरि ऊंचो आनों अरज० ॥२॥ जगमैं अनि देव बहुं हेरे, मेरा दुख नहिं भानो । बुधजनकी करुमा ल्यो सा. हिब, दीजै अविवल थानो ॥ अरज० ॥३॥ ___३५ गग-असावरी जोगियो ताल धीमों तेतालो।
तू काई चालै लाग्यो रे लोभीड़ा, आयो छै बुदाौँ।तू ।। टेक ॥धंधामाहीं अंधा है के, कयों खोवे छै आपरे॥ तु० ॥२॥ हिमत घटी थारी सुमतं मिटो छ, भाजि गयो तरुणांपों।