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बुधजन विलास सारद० ॥ टेक ॥ ज्या तिरसातुर जीवका, अम्रत जल पाया ।। मारद०॥ १ ॥ नयं परमान लिखपत तत्वार्थ बताया। भाजी भूलि मिथ्यातकी, निज निधि दरसाया ।। सारद. ॥२॥ विधिना माहि अनादित. चहंगति भरमाया । ता हरिबकी विधि सवै, मुझमाहिं बताया ॥ सारद० ॥३॥गुन अनंत मति अलपत, मोपे जात न गाया । प्रचु। कृपा लखि रावरी, बुधजन हरषाया। सारद० ॥ ४॥
गुरु दयाल तेरा दुख लखिक, सुन लें जो फुरमावै है ॥ गुरु०॥ तोम तेरा जतन वतावै, लोभ कछु नहिं चावै है ॥ गुरु० ॥१॥ पर सुभावको मोरया चाहै, अपना उसे बनावै है। सो तो कबहुं हुवा न होसी, नाहक रोग लगाव है। गुरु०॥२॥ खोटी खरी जस करी कमाई. तैमी तेरै प्राव है। चिन्ता आगि उठाय हियाम, नाहक जान जलावै है ।।गुरु०॥