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जन गायन सुधा नई तर्जके बाइस्कोपके गानोंको सुन २ कर छोटे छोटे बालक उन्हीं अश्लील और भद्दे सारहीन गानों को अलापा करते थे, उनको सुनकर जैन समाजके बड़े २ कवियोंने उसी तर्ज पर अपनी लेखनी उठाकर वास्तवमें एक बड़ी भारी आवश्यकताकी पूर्ति कर दी है। चुने हुए करीब १३६ गायनोंका . संग्रह हमने एकत्रित कराके इस जैन गायन सुधाको सचित्र सुन्दर छापकर आपके समक्ष रखा है। पृष्ठ संख्या होनेपर भी मूल्य ॥) मात्र ।
प्रद्युम्न चरित्र सचित्र ( शास्त्राकार ) आज कलकी सरल भाषा में सम्पादन करके सुन्दर बार्डर सहित कई चित्रोंसे विभूषित कराके छपाया गया है । टाइप सच्चा जिनवाणी संग्रहकी तरह बड़ा और पुष्ट कागज देकर ग्रन्थको उत्तम बनाने में कुछ भी कसर नहीं रखी गयी है। इतनी सब कुछ विशेषतायें रहते हुए भी न्यो० ३) मात्र । सजिल्दका ४) रखी है।
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१६४१ हरीसनरोड, कलकत्ता।