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कर माना । सुख दुख दोऊ कर्म अवस्था, मैं क. मनतै आना | माई० ॥२॥ जहां भोर था तहां भई निशि, निशिकी ठौर बिहाना। भूल मिटी जिनपद पहिचाना, परमानन्द निधाना ॥ भाई० ॥ ॥३॥ D गेका गुड़ खांय कहैं किमि, यद्यपि स्वाद पिछाला । द्यानत जिन देख्या ते जाने, मेंडक हंस पखाना ॥ आई०॥४॥
(६१) राग ख्याल । आतम जान रे जान रे जान ॥टका जीवन की इच्छा करै, कबहुं न मांगे काल । (प्राणी) सोई जान्यो जीव है। सुख चाहै दुख टाल ॥ आ० ॥१॥ नैन बैनमें कौन है, कौन सुनत हैं बात । (प्राणी) देखत क्यों नहिं आपमें, जाकी चेतन जात ॥ आतम० ॥२॥ वाहिर ढूढं दूर है, अंतर निपट नजीक । (प्राणी !) दंढनवाला कौन है, सोई जानो ठीक । आतम० ॥३॥ तीन भवनमें देखिया आतम सम नहिं कोय । (प्राणी ! ) द्यानत जे अनुभव करें। तिनकौं शिवसुख होय ।४।
(६२) राग सोरठ। मन ! मेरे राग भाव निवार ॥टेक॥ राग चि