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[ २१ ] विषय रोग लपटायो ॥ जीव० ॥२॥ चेतन नाम भयो जड़ काहे, अपनो नाम गमायो । तीन लोक को राज छाँडिकै, भीख मांग न लजायो ॥ जीव० ॥३॥ मूढ़पना मिथ्या जब छूट, तब तू संत कहायो । द्यानत सुख अनन्त शिव विलसो, यों सदगुरु बतलायो । जीव० ॥४॥
(३६) राग सारंग। हम लागे आतमरामसों ॥टेक॥ विनाशोक पुदगलकी छाया, कौन रमै धनवानसों॥हम०॥१॥ समता सुख घटमें परगास्यो कौन काज है काम सों। दुविधा-भाव जजांजुलि दीनौँ, मेल भयो निज स्वामसों । हम० ॥२॥ भेदज्ञान करि निज परि देख्यौ, कौन विलोकै चामसौं । उरै परैकी बात न भावै, लौ लाई गुणग्रामसों ॥ हम० ॥३॥ विकलप भाव रंक सब भाजे, झरि चेतन अभिरामसों। धानत आतम अनुभव करिकै छुट भव दुखधामसों ।। हम० ॥४॥
(४०) प्रभु अब हमको होहु सहाय ॥टेका। तुमषिन हम बहु जुग दुख पायो, अब तो परसे पांय ॥प्रभु