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[ २२ | तीन लोक में नाम तिहारो, है सबको सुखदाय | सोई नाम सदा हम गावैं, रीझ जाहु पतियाय ॥ प्रभु० ॥२॥ हम तो नाथ कहाये तेरे जावैं कहां सु बताय । बांह गहेकी लाज निबाहौ जो हो त्रिभुवनराय || प्रभु० ॥३॥ द्यानत सेवकने प्रभु इतनी, विनती करी बनाय । दीनदयाल दया धर मनमें, जमतें लेहु बचाय ॥ प्रभु० ॥४॥
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बस संसार में मैं, पायो दुःख अपार ॥ टेक ॥ मिथ्याभाव हिये धो नहिं जानों सम्यकचार ॥ बसि० ||१|| काल अनादिहि हौं रुत्यौ हो, नरक निगोद मंकार । सुर नर पद बहुते धरे पद, पद प्रति आतम धार ॥ सि० ||२|| जिनको फल दुखपुंज है हो, ते जानें सुखकार । भ्रम मद पीय बिकल भयो नहि, गह्यो सत्य व्योहार ॥ बसि० ॥३॥ जिनबानी जानी नहीं हो, कुगति विनाशन हार । द्यानत अब सरधा करी दुख मेटि लह्यो सुखसार ॥ बसि० ॥ ४॥
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धनि धनि ते सुनि गिरिवनवासी ॥टेक॥ मार