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[ २५ ] सिंघासन घरनों, ये गुण तुमते न्यारे। तुम गुण कहन वचन वल नाहीं, नैन गिनें किमि तारे ॥३॥
(४६) भज श्रीआदिचरन मन मेरे, दूर होय भव भव दुख तेरे ॥टेक॥ भगति बिना सुख रंच न होई, जो ढूंतिहुं जगमें कोई ॥ भज० ॥१॥ प्रान-पयान-समय दुख भारी, कंठविर्षे कफकी अधिकारी । तात मात सुत लोग घनेरा, तादिन कौन सहाई तेरा ॥ भय० ॥२॥ तू बसि चरण चरण तुझमाहीं, एकमेक ह्वै दुविधा नाहीं । तातै जीवन सफल कहावै, जनम जरा मृत पास न आवै॥ भज० ॥३॥ अब ही अवसर फिर जम घेरै, छांदि लरक बुध सद्गुरु टे। द्यानत और जतन कोउ नाही, निरभय होय तिहूँ जगमाहीं ।
(४७) प्राणी लाल ! धरम अगाऊ धारौ ।।टेक॥ जब लौं धन जोवन हैं तेरे; दान शील न विसारौ ॥ प्राणी० ॥१॥ जपलौं करपद दिढ़ हैं तेरे, पूजा तीरथ सारौ। जीभ नैन जबलौं हैं नीके, प्रभु गुन गाय तिहारौ ॥ प्राणी ॥२॥ आसन श्रवण सबल