________________
पउमचरियं
[१.३२प्रन्थविषयानुक्रमणिकाठिईवंससमुप्पत्ती', पत्थाणरणं' लवंकुसुप्पत्ती'। निवाणमणेयभवा, सत्त पुराणेत्थ अहिगारा ॥ ३२ ॥ पउमस्स चेट्टियमिणं, कारणमिणमोऽहिगारसंजुत्तं । तिसलासुएण भणियं, सुत्तं संखेवओ मुणह ।। ३३ ।। वीरस्स पवरठाणं, विउलगिरीमत्थए मणभिरामे । तह इन्दभूहकहियं, सेणियरण्णस्स नीसेसं ॥ ३४ ॥ कुलगरवंसुप्पत्ती, नीईए लोगकारणं चेव । उसभजिणजम्मणुब्भव, अहिसेयं मन्दरगिरिम्मि ॥ ३५ ॥ उवएसं चिय विविह, लोगस्स य अत्तिनासणं चेव । सामण्ण केवलुब्भव, अइसय कुसुमोहवुट्टीओ ॥ ३६ ॥ सबसुरा-ऽसुरमहियं, निवाणं परमसोक्खमाहप्पं । भरहस्स बाहुबलिणो, तह संगाम जहावत्तं ॥ ३७ ॥ जाईण य उप्पत्ती, कुतित्थगण-विविहवेसधारीणं । विज्जाहरवंसस्स य, उप्पत्ती विजुदन्तस्स ॥ ३८ ॥ उवसगं पि य घोरं, मुणिवरवसहस्स संजयन्तस्स । केवलनाणुप्पत्ती, विजाहरणं च धरणेणं ॥ ३९ ॥ अजियस्स य उप्पत्ती, पुण्णघणसुहा-ऽसुहं समोसरणे । विज्जाहरस्स दिन्नं, सरणं जह रक्खसिन्देणं ॥ ४० ॥ दिन्नं रक्खसवइणा, ठाणं च वरो जहा कुमारस्स । सगरस्स य उप्पत्ती, दुक्खं सामण्ण निवागं ॥ ४१ ॥ अइकन्तमहारक्खो, जम्मणविहवस्स कित्तणं चेव । तह रक्खसवंसस्स य, पवत्तणं चेव नायव्वं ॥ ४२ ॥ वाणरकेऊण तहा, वंमुप्पत्ती कमेण नायबा । तडिकेसिस्स य चरियं, उदहिकुमारेण सहियस्स ॥ ४३ ॥ किक्किन्धिअन्धयाणं, सिरिमालाखेयराण आगमणं । वहणं च विजयसीहस्स कोवणं असणिवेयस्स ॥ ४४ ॥
अधिकार और विषयसूची
इस पुराणमें सात अधिकार हैं-१. विश्वकी स्थिति, २. वंशोत्पत्ति, ३. युद्ध के लिए प्रस्थान, ४. युद्ध, ५. लवण एवं अंकुशकी उत्पत्ति, ६. निर्वाण, और ७. अनेक भव । (३२) त्रिशलाके पुत्र महावीर के द्वारा संक्षेपमें कहे गये, तथा विभिन्न अधिकारोंसे युक्त इस पद्मके चरितको तुम सुनो । (३३) इसमें इन घटनाओंका उल्लेख आता है :
१. विपुलाचलके मनोरम शिखर पर भगवान महावीरका ठहरना, २. इन्द्रभूति द्वारा श्रेणिक राजाको समग्र कथा कहना, (३४) ३. कुलकरवंशकी' उत्पत्ति, ४. लोक-व्यवहारको चलानेवाली नीतिकी स्थापना, ५. भगवान् ऋषभदेवका जन्म तथा मन्दराचल पर उनका अभिषेक, (३५) ६. विविध प्रकारका उपदेश, ७. लोगोंके दुःखोंका निवारण, ८. दीक्षा, ९. केवळ ज्ञानकी प्राप्ति, १०. अतिशय वर्णन, ११. पुष्पराशिकी वृष्टि (३६) १२. सभी सुरों एवं असुरों द्वारा की गई पूजा, १३. निर्वाण, १४. मोक्षका उत्कृष्ट माहात्म्य, १५. भरत एवं बाहुबलीका जैसा संग्राम हुआ उसका वर्णन, (३७) १६. जातियोंकी उत्पत्ति, १७. विविध वेशधारी अन्य मतावलम्बियोंकी उत्पत्ति, १८. विद्यइंटके विद्याधर वंशकी उत्पत्ति, (३८) १९ मुनियों में वृषभके समान श्रेष्ठ संजयन्तके ऊपर पड़े हुए घोर उपसर्ग तथा केवलज्ञानकी उत्पत्ति, २०. धरण द्वारा किया गया विद्याका अपहरण, (३९) २१. अजितकी उत्पत्ति, २२. समवसरणमें कहा गया पूर्ण-घनका शुभ-अशुभ, २३. राक्षसेन्द्रके द्वारा दिया गया विद्याधर को आश्रय, (४०) २४. राक्षसपति द्वारा कुमारको दिया गया प्रश्रय एवं वर, २५. सगरकी उत्पत्ति, दुःख, मुनिधर्मका अंगीकार एवं निर्वाण, (४१) २६. अतिकान्त नामक महाराक्षस, उसके जन्म एवं वैभवका संकीर्तन । २७. इसी प्रकार राक्षसवंशका प्रारम्भ जानना चाहिए। (४२) २८. जिनकी ध्वजामें वानरका चिह्न है ऐसे वानरकेतु वंशकी उत्पत्ति, २९. उदधिकुमारके साथका तडित्केशीका चरित भी इसी प्रकार क्रमसे जानना चाहिए। (४३) ३०. किष्किन्धि, अन्धक तथा श्रीमाल खेचरोंका आगमन, ३१. विजयसिंह का वध, ३२. अशनिवेगका क्रोध, (४४) ३३. अन्धकवध, ३४. पादालंकार नामकी सुंदर नगरीमें प्रवेश, ३५. मधुगिरिके शिखर
१. आति-पीडा। २. यथावृत्तम् । ३. चरितेऽस्मिन् किक्किन्धिस्थाने किंकिंधि इत्यपि पाठो प्राचीनेष्वादशेषु दृश्यते। ४. युगके आदिमें नीति आदिको व्यवस्था करनेवाले महापुरुषको कुलकर कहते हैं। ५. तीर्थकरके ३४ अतिशय (महिमासूचक विभूतियाँ) गिनाये गये हैं। वे हैं-"चउरो जम्मप्पभिई एक्कारस कम्मसंखए जाण । नव दस य देवजणिए चउतिसं अइसए वंदे ॥"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.