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३८
पउमचरियं
इक्ष्वाकुवंशः
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६ ॥
भरहस्स पढमपुत्तो, आइञ्चनसो त्ति नाम विक्खाओ । तस्स य सीहजसो च्चिय, पुत्तो तस्सेव बलभद्दो ॥ ३ ॥ वसुबल महाबलो चिय, अमियबलो चेव होइ नायबो । जाओ सुभद्दनामो, सायरभद्दो य रवितेओ | ससिपह पभूयतेओ, तेयस्सी तावणो पयावी य । अइविरिओ य नरिन्दो, तस्स य पुतो महाविरिओ || उइयपरक्कमनामो, तस्स वि य महिन्दविकमो पुत्तो । सूरो इन्दजुइण्णो, महइ महाइन्दई राया ॥ तत्तो भूबिभूविय, अरिदमणो चेव वसहकेऊ य । राया विय गरुडङ्को, तह य मियको समुप्पन्नो ॥ एते नरवरवसहा, पुहई दाऊण निययपुत्ताणं । निक्खन्ता खायजसा, सिवमय लमणुत्तरं पत्ता ॥ ८ ॥ एसो ते परिकहिओ, आइञ्चार्जसाइसंभवो वंसो । एत्तो सुणाहि नरवर ! उप्पत्ती सोमवंसस्स ॥ ९ ॥ सोमवंशः
७ ॥
१० ॥
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११ ॥
१२ ॥
उसभस्स बीयपुत्तो, बाहुबली नाम आसि विक्खाओ । तस्स य महप्पभावो, पुत्तो सोमप्पभी नाम ॥ तो महाबलो चिय, सुबलो बाहुबलि एवमाईया । सोमप्पहस्स वंसे, उष्पन्ना नरवई बहुसो केएत्थ गया मोक्खं, पबज्जं गिव्हिऊण धुयकम्मा । अवरे पुण देवत्तं, पत्ता तव - संजमबलेणं ॥ एवं तु सोमवंसो, नरवइ ! कहिओ मए समासेणं । विज्जाहराण वंसं भणामि एत्तो निसामेहि ॥ विद्याधरवंश:नामेण रयणमाली, नमिरायसुओ महाबलसमिद्धो । तस्स वि य रयणवज्जो, रयणरहो चेव उप्पन्नो ॥ १४ ॥
१३ ॥
[ ५.३
इक्ष्वाकुवंशका वर्णन
उसका पुत्र सिंहयशा था। सिंहयशांका पुत्र बलभद्र उससे सुभद्र, सागरभद्र तथा रवितेज हुए। (४) उससे क्रमशः राजा हुए। उसका ( अतिवीर्यका) पुत्र महावीर्य था । (५)
भरतका प्रथम पुत्र आदित्ययशाके नामसे प्रसिद्ध था । हुआ । (३) उससे क्रमश: वसुबल, महाबल, अतिबल हुए। शशिप्रभ. प्रभूततेज, तेजस्वी, तपन, प्रतापवान् तथा अतिवीर्य उसका उदितवीर्य नामका पुत्र हुआ । उसका पुत्र महेन्द्रविक्रम हुआ । उससे अनुक्रमसे सूर्य, इन्द्रद्युम्न तथा महेन्द्रजित नामके महान् राजा हुए। (६) उससे क्रमश: प्रभु विभु, अरिदमन, वृषभकेतु, गरुडांक राजा तथा मृगांक हुए। (७) ये यशस्वी राजा अपने-अपने पुत्रोंको राज्य देकर प्रब्रजित हुए और कर्ममलसे रहित तथा अनुत्तर ऐसा मोक्षपद प्राप्त किया । (= ) हे नरवरं ! यह मैंने आदित्ययशासे उत्पन्न वंशके बारेमें तुमसे कहा । अब सोमवंशकी उत्पत्तिके बारेमें तुम सुनो । (९)
सोमवंशका वर्णन
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भगवान् ऋषभदेवका बाहुवली नामका दूसरा एक सुविख्यात् पुत्र था । उसका महान् प्रभावशाली सोमप्रभ नामका एक पुत्र था । (१०) उससे महाबल, सुबल, बाहुबली भादि अनेक नरपति सोमप्रभके वंशमें पैदा हुए। (११) उनमें से कई दीक्षा अंगीकार करके तथा कर्मोंको नष्ट करके मोक्षमें गए तो दूसरोंने तप एवं संयमके बलसे देवत्व प्राप्त किया । ( १२ ) इस प्रकार, हे राजन् ! संक्षेपसे मैंने सोमवंशके बारेमें कहा । मैं विद्याधरवंशके बारेमें कहता हूँ, वह तुम सुनो । (१३)
विद्याधरवंशका वर्णन -
नमि राजाका रत्नमाली नामका अत्यन्त बलशाली पुत्र हुआ । उसका रत्नवत्र और रत्नव्रज का रत्नरथ पुत्र
९. ब्जसस्स संभवो — प्रत्य० ।
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