Book Title: Paumchariyam Part 1
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

Previous | Next

Page 327
________________ २७४ पउमचरियं [३४. ३५पन्थेण संचरन्ता, वारिज्जन्ता व गोवपहिएहिं । वरवसभलीलगामी, किंचुद्देसं वइक्वन्ता ॥ ३५॥ अह भणइ नणयतणया, वामदिसावट्ठिओ कडुयरुक्खे । वाहरइ इमो रिट्ठो, सामिय! कलह निवेएइ ॥ ३६॥ अन्नो य खीररुक्खे. वहरमाणो जयं परिकहेइ । भणियं महानिमित्ते, होइ मुहत्तन्तरे कलहो ॥ ३७ ॥ थोवन्तरं निविट्ठा, पुणरवि वच्चन्ति अडविपहहुत्ता । पुरी मेच्छाण बलं, ताव य पेच्छन्ति मसिवण्णं ॥ ३८ ॥ मेच्छाण समावडिया, दोण्णि वि सरवरसयाणि मुञ्चन्ता । तह जुज्झिउं पवत्ता, जह भग्गाऽणारिया सबे ॥ ३९ ॥ अह ते भउद्दुयमणा, गन्तूण कहेन्ति निययसामिस्स । महया बलेण सो वि य, पुरओ य उवढिओ ताणं ॥ ४० ॥ मिच्छा कागोणन्दा, विक्खाया महियलम्मि ते सूरा । जे सयलपस्थिवेसु वि, न य संगामम्मि भञ्जन्ति ॥ ४१ ॥ दट्टण उच्छरन्तं, मेच्छचलं पाउसे घणवन्द्रं । लच्छीहरेण एत्तो, रुट्ठणं बलइयं धणुयं ॥ ४२ ॥ अप्फालियं सरोसं, चावं लच्छीहरेण सहस त्ति । जेणं तं मेच्छबलं, भीयं आगम्पियं सहसा ॥ ४३ ॥ दट्ठ ण निययसेन्नं, संभन्तं भयपडन्तधणु-खग्गं । ओयरिय रहवराओ, पणमइ तो मिच्छसामन्तो ॥ १४ ॥ जंपइ कोसम्बीए, विप्पो वेसाणलो त्ति नामेणं । भज्जा से पइभत्ता, तीए हं कुच्छिसंभूओ ॥ ४५ ॥ नामेण रुद्दभूई, बालपभूईएँ दुट्टकम्मकरो । गहिओ य चोरियाए, सूलाएँ निरोविओ भेत्तं ॥ ४६॥ कारुण्णमुवगएणं, वणिएण विमोइओ तहिं सन्तो । एत्थाऽऽगओ भमन्तो, कागोनन्दाहिवो जाओ ॥ ४७॥ इह एत्तियम्मि काले, बलवन्ता जइ वि पत्थिवा बहवे । मह दिट्टिगोयरं ते, असमत्था रणमुहे धरि ॥ ४८ ॥ सो हं निराणुकम्पो, दरिसणमेत्तेण तुम्ह भयभीओ । चलणेसु एस पडिओ, भणह लहुं किं करेमि ? त्ति ।। ४९ ॥ ग्वालोंके द्वारा मना करनेपर भी उत्तम वृषभके समान सुन्दर गतिवाले उन्होंने मार्गपर आगे बढ़ते हुए कुछ। प्रदेश तय किया। (३५) तब जनकतनया सीताने कहा कि, हे स्वामी ! कटुक वृक्षकी बाई ओर बैठा हुआ यह कौआ बोल रहा है, जो कलह का सूचक है। (३६) क्षीरवृक्षपर बोलनेवाला दूसरा जयकी सूचना देता है। महानिमित्तशास्त्रमें कहा गया है कि ऐसे निमित्त उपस्थित होनेपर थोड़े समयमें ही लड़ाई होगी। (३७) वे थोड़ी देरके लिए बैठे और जैसे ही उन्होंने जंगलके मार्ग पर पुनः प्रयाण किया वैसे ही म्लेच्छोंकी काले वर्णकी सेना सामने देखी । (२८) जब उनपर म्लेच्छोंने आक्रमण किया तब उन दोनोंने सैकड़ों बाण फेंके। वे इस तरहसे लड़े कि सभी अनार्य भाग खड़े हुए। (३९) भयसे भयभीत उन अनार्योने जाकर अपने स्वामीसे कहा। वह भी बड़ी सेनाके साथ उनका सामना करनेके लिए आया । (४०) वे काकोनन्द नामके म्लेच्छ पृथ्वी पर वीरके रूपमें विख्यात थे। सब राजाओं द्वारा अर्थात् किसी भी राजासे वे युद्ध में पराजित नहीं किये जा सकते थे । (४१) वर्षा कालमें बादलोंके समूहकी तरह फैले हुए म्लेच्छ सैन्यको देखकर क्रुद्ध लक्ष्मणने धनुष चढ़ाया । (४२) लक्ष्मणने एकदम गुस्से में आकर धनुषकी ऐसी तो टंकार की कि उससे म्लेच्छोंकी वह सेना भयसे सहसा काँपने लगी । (४३) अपनी सेनाको भयभीत तथा स्वेच्छापूर्वक धनुष एवं तलवारको नीचे रखते देख उस म्लेच्छ राजाने रथसे नीचे उतरकर प्रमाण किया । (४४) उसने कहा कि कौशाम्बी नगरीमें वैश्वानल नामका एक ब्राह्मण था। उसकी पतिभक्ता नामकी पत्नी थी। उसकी गोदसे मैं पैदा हुआ हूँ। (४) मेरा नाम रुद्रभूति है। बचपनसे ही दुष्ट कर्म करनेवाला मैं चोरीके अपराधमें पकड़ा गया। मुझे मारनेके लिए शूलीपर चढ़ाया गया। (४६) दया आनेसे किसी वणिक्ने मुझे वहाँसे छुड़ाया। भटकता हुआ मैं यहाँ आ चढ़ा और काकोनन्दोंका राजा हो गया । (४७) यहाँपर अबतक मैंने यद्यपि अनेक शक्तिशाली राजाओंको देखा है, पर वे युद्ध में टिक नहीं सकते थे । (४८) ऐसा मैं अनुकम्पाशून्य आपके दर्शन मात्रसे भयभीत होकर चरणोंमें पड़ा हूँ। मैं क्या करूँ यह आप जल्दी कहें। (४९) तब कृपालु रामने कहा कि यदि मेरे वचनका पालन करते हो तो उस वालिखिल्य राजाको १. आकम्पितम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432