Book Title: Paumchariyam Part 1
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 337
________________ २८४ पउमचरियं [३६.४१ ते तम्मि य विजयपुरे, भुञ्जन्ता उत्तम बिसयसोक्खं । अच्छन्ति जहिच्छाए, दसरहपुत्ता गुणमहन्ता ॥ ४१ ॥ एवं तु पुण्णेण समज्जिएणं, अन्नन्नदेसेसु वि संचरन्ता । पावन्ति सम्माण परं मणुस्सा, तम्हा खु धम्म विमलं करेह ॥४२॥ ।। इय पउमचरिए वणमालानामं छत्तीसइमं पव्वं समत्तं ।। ___३७. अइवीरियनिक्खमणपव्वं अह अन्नया सहाए, राहव-लच्छीहराण पञ्चक्खं । तुरियं च लेहवाहो, समागओ महिहरं नमइ ॥१॥ लेहं समप्पिऊणं, सो चेव य आसणे सुहनिविठ्ठो । नरवइदिन्नाएसो, वायइ सेणावई लेह ॥ २ ॥ अस्थि सिरीअइविरिओ, नन्दावत्ते पुरे महाराया । पणउत्तमङ्गनरवइ-मउडतडोहट्टचलणजुओ ॥ ३ ॥ भरहेण सह विरोहो. महीहरं आणवेइ विजयपुरे । अइविरियमहाराया, कुसलेणाऽऽभासणं कुणइ ॥४॥ जे केइह सामन्ता, सबे वि समागया मह समीवं । चउरङ्गबलसमग्गा, वन्ति अणारिया य वसे ॥ ५॥ अञ्जणगिरिसरिसाणं, मत्ताण गयाण अट्टहि सएहिं । तिहि तुरयसहस्सेहिं, समागओ विजयसदूलो ॥ ६ ॥ कलहो केसरिसहिओ. महाधओ तह रणम्मि माईया । अङ्गाहिवइनरिन्दो, सएहि छहि मत्तहत्थीणं ॥ ७ ॥ तरयाण सहस्सेहिं, सत्तहि एए लहु समणुपत्ता । पञ्चालवई पत्थो, समागओ करिसहस्सेणं ॥ ८॥ पुण्डपुरसामिओ विय, समागओ साहणेणं बहुएणं । पत्तो य मगहराया, अट्टहिं दन्तीसहस्सेहिं ॥९॥ वजहरो य सुकेसो, मुणिभद्दो तह सुभद्दनामो य । नन्दणमाई एए, जउणाहिवई समणुपत्ता ॥१०॥ उत्तम विषम सुखका यथेच्छ उपभोग करते हुए गुणोंसे महान् ऐसे वे दशरथपुत्र उस विजयपुरमें ठहरे। (४१) इस प्रकार अर्जित पुण्यके कारण भिन्न-भिन्न देशोंमें भ्रमण करते हुए मनुष्य उत्कृष्ट सम्मान प्राप्त करते हैं, अतः विमल धर्मका अवश्य आचरण करो । (४२) ॥ पद्मचरितमें वनमाला नामका छत्तीसवाँ पर्व समाप्त हुआ । ३७. अतिवीर्यका निष्क्रमण एक दिन सभामें राम एवं लक्ष्मणके समक्ष ही एक पत्रवाहक जल्दी जल्दी आया। उसने राजाको प्रणाम किया । (१) आसनपर आरामसे बैठनेपर उसने पत्र दिया। राजाके द्वारा आदेश दिये गये सेनापतिने वह पत्र पढ़ा । (२) प्रणत राजाओंके सिरपर धारण किये हुए मुकुटोंके प्रान्त भागसे जिसके दोनों चरण छये जाते हैं ऐसे श्री अतिवीर्य नामके महाराजा नन्दावर्त नगरमें हैं। (३) उनका भरतके साथ विरोध हुआ है, अत: विजयपुरमें राजाको आज्ञा देते हैं। अतिवीर्य महाराजाने कुशलपूर्वक कहा है कि जो कोई सामन्त हैं वे सब चतुरंग सेनाके साथ मेरे पास आ गये हैं। अनार्य भो मेरे बसमें हैं । (४-५) अंजनगिरिके समान आठ सौ मत्त हाथी तथा तीन हजार घोड़ोंके साथ विजयशार्दूल आया है। (६) सिंहके साथ तथा युद्ध में लड़नेवाला अंगाधिपति राजा महाधन छ: सौ मत्त हाथियोंके साथ आया है। (७) पांचालपति पार्थ सात हजार घोड़े और एक हजार हाथीके साथ शीघ्र ही उपस्थित हुआ है। (८) पुण्ड्रपुरका स्वामी भी बहुत-सी सेनाके साथ आया है। मगधराज भी आठ हजार हाथियों के साथ आया है। (९) वधर, सुकेश, मुनिभद्र, सुभद्र तथा नन्दन आदि यमुनाधिपति आये हैं। (१०) अनिवारितवीर्य, केसरिवीर्य तथा सिंहरथ आदि मेरे मामे भी सेनाके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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