Book Title: Paumchariyam Part 1
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 345
________________ २९२ पउमचरियं [३८.४८ भणइ तओ सोमित्ती, मह जेट्टो चिट्ठई वरुज्जाणे । सो जाणइ परमत्थं, तं पुच्छसु नरवई गन्तुं ॥ ४८ ॥ आरुहिऊण रहवरं, जियपउमा लक्खणेण समसहिया । पउमस्स सन्नियासं, राया य गओ समन्तिजणो ॥ ४९ ॥ जियपउमाएँ समाणं, सोमित्ती रहवराउ ओयरिउं । नमिऊण रामदेवं, सीयासहियं चिय निविट्ठो ॥ ५० ॥ सत्तदमणो वि राया, परियण-सामन्त-बन्धुजणसहिओ। पउमस्स चलणजुयलं, पणमिय तत्थेव उवविट्ठो ॥ ५१ ॥ तत्थऽच्छिउँ खणेकं, परिपुच्छेऊण देहकुसलाई । पउमो सीयाएँ समं, पवेसिओ रइणा नयरं ॥ ५२ ॥ जणिओ य महाणन्दो, नरवइणा हट्ट-तुट्ठमणसेणं । तूरसहस्ससमाहय-नच्चन्तजणेण अइरम्मो ॥ ५३ ॥ तत्थऽच्छिऊण कालं, केत्तियमेतं पि भोगदुल्ललिया । काऊण संपहार, गमणेक्कमणा वरकुमारा ॥ ५४ ॥ जियपउमा विरहाणल-भीया दट्ट ण भणइ सोमित्ती । आसासिउं पयट्टो, जह वणमाला तहा सा वि ॥ ५५ ॥ सीया-लक्खणसहिओ, पउमो नगराउ निग्गओ रत्तिं । दाऊण अद्धिई सो, सबस्स वि नयरलोयस्स ॥ ५६ ॥ परभवसुकएणं ते महासत्तिमन्ता, जइ वि विहरमाणा जन्ति अन्नन्नदेसं। तह वि समणुहोन्ती सोक्ख-सम्माण-दाणं, जणियविमलकित्ती राम-सोमित्तिपुत्ता ॥ ५७ ॥ ॥ इय पउमचरिए जियपउमावक्खाणं नाम अट्ठतीसइमं पव्वं समत्तं ।। ३९. देसभूसण-कुलभूसणवक्खाणं अह ते बहुविहतरुवर-वल्लि-लयाकुसुमगन्धरिद्धिल्लं । वच्चन्ति दसरहसुया, लीलायन्ता महाअडविं ॥ १ ॥ माँगकर शत्रुदमनने कहा कि मेरी पुत्रीका विवाहोत्सव यहाँ करो। (४७) तब लक्ष्मणने कहा कि मेरे बड़े भाई सुन्दर उद्यान में ठहरे हुए हैं। वह परमार्थ ( कर्तव्य-अकर्तव्यकी वास्तविकता) जानते हैं। अतः हे राजन् ! उन्हें जाकर तुम पूछो। (४८) रथ पर आरूढ़ होकर लक्ष्मणके साथ जितपद्मा तथा मंत्रियोंके साथ राजा भो रामके पास गया । (४९) जितपनाके साथ लक्ष्मण रथमेंसे नीचे उतरा और सीता सहित रामको प्रणाम करके बैठा । (५०) परिजन, सामन्त एवं बन्धुजनोंसे युक्त शत्रुदमन भी रामके चरणयुगलमें प्रणाम करके वहीं बैठा। (५१) वहाँ एक क्षण ठहरकर और शरीरकी कुशल आदि पूछकर राजाने सीताके साथ रामको नगरमें प्रवेश कराया। (५२) हृष्ट और तुष्ट मनवाले राजाने हजारों वाद्योंके साथ वादन एवं नृत्य करते हुए लोगोंके कारण अत्यन्त सुन्दर ऐसा बड़ा भारी उत्सव मनाया। (५३) वहाँ कुछ समय ठहरकर भोगोंमें अनुत्सुक और एकाग्र चित्तवाले उन दोनों कुमारवरोंने गमनके लिए निश्चय किया। (५४) विरहाग्निसे भयभीत जितपद्माको देखकर लक्ष्मण आश्वासन देने लगा कि जैसी वनमाला है वैसी तुम भी हो । (५५) सब नगरजनोंको अधैर्य प्रदान करके सीता एवं लक्ष्मणके साथ राम रातके समय नगरमेंसे निकल पड़े । (५६) परभवके पुण्यसे महाशक्तिशाली वे राम और लक्ष्मण विचरण करते हुए यद्यपि विभिन्न देशोंमें गये, तथापि विमल कीर्ति सम्पादन करनेवाले वे सुख, सम्मान एवं दानका अनुभव करते थे। (५७) ॥ पद्मचरितमें जितपद्माका आख्यान नामक अठतीसवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥ ३९. देशभूषण एवं कुलभूषणका आख्यान देव द्वारा लाये गये पदार्थोंका उपभोग करनेवाले, शरीर एवं उपकरणों के कारण जिनका गौरव किया गया है ऐसे, धनुषरत्न हाथमें धारण किये हुए, सिंहके समान निर्भय तथा धीर वे दशरथ पुत्र राम और लक्ष्मण अनेक प्रकारके वृक्ष, १. महाविवाहः । २. दाऊणं अधिई-प्रत्य० । . .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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