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पउमचरियं
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सो तं अजाणमाणो, अन्नाणी तावसो विलक्खो सो । होही परब्भवो से, कन्नाऍ तुमं कहेज्जासु ॥ ५३ ॥ अथेत्थ वणियगोत्ते, पवरो नामेण बहुघणाइण्णो । तस्सेसा अङ्गरुहा, भण्णइ रुइर त्ति विक्खाया ॥ तो यतइदियो, करिही कालं इमा सकम्मेहिं । होही कुबरगामे, मेसी य विसालनामस्स ॥ सा मारिया वि तेणं, महिसी होऊण पुण मया सन्ती । होही विसालधूया, पवरस्स उ निययमामस्स ॥ भणिऊण वयणमेयं, पणमिय गुरुवं गओ अह सुकेऊ । पत्तो तावसनिलयं, तेहि समं कुणइ वायत्थं ॥ जं गुरुणा उवइईं, तं सर्वं तावसाण परिकहियं । सुणिऊण अग्गिकेऊ, तं संबन्धं च पडिबुद्धो ॥ तत्तो विसालधूया, लद्धा पवरेण नामउ विधूया । एत्तो विवाहसमए, सो भणिओ अग्गिकेऊणं ॥ मा परिणसु पवर ! तुमं, एसा ते आसि परभवे धूया । अन्ने वि तीऍ जम्मा, विसालपुरओ समक्खाया ॥ सरिऊण पुबजाई, सा कन्ना तिबजायसंवेगा । नेच्छइ य विवाहविहिं, नवरं चिय महइ पवज्जं पवरस्स विसालस्स य, ववहारो तीऍ कारणे जाओ । अम्हं पिओ सभाए, दोण्ह वि उल्लावसंलावो ॥ सा कन्ना पबइया, अम्हे वि य तं सुणेवि वित्तन्तं । जाया निग्गन्धमुणी, पासम्मि अणन्तविरियस्स ॥ एवं मोहवसेणं, जीवाणं होन्ति कुच्छियायारा । जणणी सुया य बहिणी, नायइ महिला विहिवसेणं ॥ सुणिऊण तं जडागी, अहिययरं भवसमूहदुक्खाणं । भीओ करेइ सद्दं, कलुणं चिय धम्मगहणट्टे ॥ तं भइ सुगुत्तमुणी, भद्द ! तुमं मा करेहि परपीडं । अलि अबम्भचेरं, नावज्जीवं विवज्जेहि ॥ राईभोयणविरई, करेहि मंसस्स वज्जणं चेव । उववासविहिं च पुणो, भावेहि जहानुसती वारेऊण कसाए, निचं जिण - मुणिनमंसणुज्जुतो । होहि परलेोगकङ्खी, जेण भवोहं समुत्तरसि ॥ जं मुणिवरेण भणियं तं सबं गेण्हिऊण भावेणं । पक्खी हरिसवसगओ, सावयधम्मुज्जओ जाओ ॥
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जायगा और इस प्रकार पराजित होगा । फिर तुम उस कन्या के बारेमें कहना कि यहाँ पर अत्यन्त सम्पन्न प्रवर नामका एक वणिक है। उसकी यह रुचिरा नामकी प्रसिद्ध पुत्री कहो जाती है। (५३-५४) आजसे तीसरे दिन अपने कर्मोंके कारण यह मर जायगी और कुब्वर गाँवमें विशालकी बकरी होगी । उसके द्वारा मारे जाने पर भैंस होकर मरने पर वह विशालकी लड़कीके रूपमें उत्पन्न होगी और फिर अपने मामा प्रवरको वह दी जायगी। वह सुकेतु गुरुको प्रणाम करके चल दिया और तापस आश्रम में पहुँचा । वहाँ उनके साथ शास्त्रार्थ करने लगा । ( ५५-५७) गुरुने जो कुछ कहा था वह सब उसने तापसोंसे कहा । उस वृत्तान्तको सुनकर अनिकेतु प्रतिबोधित हुआ । (५८) तब विशालकी धूता नामकी पुत्री प्रयरने प्राप्त की । विवाहके समय अग्निकेतुने उसे कहा कि, हे प्रवर! तुम विवाह मत करो । यह परभवमें तुम्हारी पुत्री थी । उसके दूसरे भी जन्मोंके बारेमें विशालके समक्ष कहा । ( ५९-६०) पूर्वजन्मको याद करके जिसे तीव्र वैराग्य उत्पन्न हुआ है ऐसी उस कन्याने विवाहको इच्छा न की; केवल प्रत्रज्याकी ही आकांक्षा की । (६१) उसके सम्बन्ध में प्रवर और विशालके बीच सभामें ऐसी बातचीत हुई कि हम दोनों ही इसके पिता हुए । (६२) उस कन्याने दीक्षा ली है ऐसा वृत्तान्त सुनकर हम भी अनन्तवीर्यके पास निर्मन्थ मुनि हुए । (६३) इस प्रकार मोहके वशीभूत होनेसे जीव कुत्सित आचारवाले होते हैं और माता, पुत्री एवं बहन कर्मवश पत्नीरूप होते हैं । (६४)
यह सुनकर जन्मसमूहके दुःखोंसे अत्यन्त भयभीत जटायु धर्मग्रहण के लिए करुण शब्द करने लगा । (६५) सुगुप्त मुनिने उसे कहा कि, भद्र ! तुम दूसरे को दुःख मत दो तथा झूठ एवं अब्रह्मचर्यका यावज्जीवन परित्याग करो। (६६) रात्रिभोजनका त्याग तथा मांसका वर्जन करो और यथाशक्ति उपवास करो। (६७) कषायका परित्याग करके नित्य जिनेश्वरदेव तथा मुनियोंको नमस्कार करनेमें उद्यमशील रहो और परलोकके आकांक्षी रहो जिससे भवसागरको तैर सको । (६८) मुनिवरने जो कुछ कहा वह सब भावपूर्वक अंगीकार करके आनन्दविभोर पक्षी श्रावकधर्म में उद्यत हुआ । (६९) साधुने
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