Book Title: Paumchariyam Part 1
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

Previous | Next

Page 404
________________ ३५१ ५३.७२] ५३. हणुवलवानिग्गमणपव्वं अह निच्छिए य सिग्छ, सिबिराओ आणिओ वराहारो। हणुयकुलबालियाहिं, ताव चिय उम्गओ सूरो ॥ ५७ ॥ सीयाएँ पवणपुत्तो, एत्तो अणुमन्निओ सह भडेहिं । निमिओ य वराहार, ताव मुहुत्ता गया तिणि ॥ ५८ ॥ सम्मजिओवलित्ता, हियए काऊण राघवं. सीया । भुअइ परमाहार, नाणाविहरससमाउत्तं ॥ ५९ ॥ निबत्तभोयणविही, विनविया मारुईण जणयसुया । आरुहसु मज्झ खन्धे, नेमि तहिं जत्थ तुह दइओ ॥ ६० ॥ सीया भणइ रुयन्ती, न य जुत्तं मज्झ ववसिउं एयं । परपुरिससङ्गफास, किं पुण खन्धम्मि आरुहणं ।। ६१ ॥ परपुरिसविलग्गा है, मणसा वि न चेव तत्थ वच्चामि । मरणं व होहि इहई, नेही रामो व आगन्तुं ॥ ६२॥ जाव च्चिय दहवयणो, न कुणइ तुह इह उवद्दवं किंचि । ताव अविग्घेण लहुँ, मारुइ! वच्चाहि किक्किन्धि ॥ ६३ ॥ मह वयणेण भणेजसु, हणुव! तुम राघवं पणमिऊणं । साहिन्नाणेसु पुणो, इमेसु वयणेसु बीसत्थो । ६४ ॥ तत्थुद्देसम्मि मए, चारणसमणा महन्तगुणकलिया । परिवन्दिया तुमे वि य. तिबेणं भत्तिराएणं ॥ ६५ ॥ विमलजले पउमसरे, वणहत्थी मयगलन्तगण्डयलो । दमिओ तुमे महाजस!, नागो इव मन्तवादीण ॥ ६६ ॥ अन्ना वि चन्दणलया. कुसुमभरोणमियसुरहिगन्धिल्ला । भमरेसुग्गीयरवा. भुयासु अवगृहिया सामि! ॥ ६७ ॥ पउमसरस्स तडत्था, ईसावस किंचिमुवगएण तुमे । उप्पलनालेण हया, अयं अइकोमलकरेणं ।। ६८ ॥ अह पबयस्स उवरिं, नाह ! मए पुच्छिया तुमे सिट्ठा । नीलघणपत्तविडवा, एए णदिदुमा भद्दे ! ॥ ६९ ॥ तीरे कण्णरवाए, नईऍ मज्झण्हदेसयालम्मि । पडिलाहिया य साहू, दोहि वि अम्हेहि भत्तीए ॥ ७० ॥ धुटुं च अहो दाणं, पडिया य सकश्चणा रयणवुट्टी। पवणो सुरहिसुयन्धो, देवेहि वि दुन्दुही पहया ॥ ७१ ॥ तेएण पज्जलन्ती, तइया चूडामणी इमा लद्धा । एवं नेहि कइद्धय, साहिन्नाणं मह पियस्स ॥ ७२ ॥ इसके अन्तर हनुमानने सीतासे विनती की कि अब आप भोजन करें, क्योंकि आपने जो पहले प्रतिज्ञा की थी वह सम्पूर्ण हुई है। (५६) तब निश्चित होनेपर शिबिरमेंसे हनुमानकी कुलकन्याओं द्वारा उत्तम आहार लाया गया। उस समय सूर्य भी उगा । (५७) सीताके द्वारा अनुमत हनुमानने सुभटोंके साथ भोजन किया। तबतक तीन मुहूर्त बीत गये। (५८) बुहारे और पोते गये स्थानपर रामको हृदयमें याद करके सीताने नानाविध रससे युक्त उत्तम आहार लिया। (५६) भोजन-कार्य समाप्त होनेपर हनुमानने सीता से बिनती की कि आप मेरे कन्धोंपर सवार हों। जहाँ आपके पति हैं वहाँ में आपको ले जाऊँगा । (६०) इसपर रोती हुई सीताने कहा कि ऐसा परपुरुषका संग और स्पर्श करना मेरे लिए उपयुक्त नहीं है, तो फिर कन्धेपर सवार होनेकी तो बात ही क्या ? (६१) परपुरुषके साथ संलग्न होकर मैं मनसे भी वहाँ नहीं जाऊँगी, फिर भले ही मेरा यहाँ मरण हो। राम यहाँ आ करके ही मुझे ले जाय । (६२) हे मारुति ! जबतक रावण तुमपर यहाँ कोई उपद्रव नहीं करता तबतक तुम जल्दी ही और निर्विघ्न रूपसे किष्किन्धि चले जाओ । (६३) हे हनुमान ! मेरे वचनसे प्रणाम करके तुम अभिज्ञान रूप इन वचनोंसे विश्वस्त होनेवाले रामसे कहना कि उस प्रदेशमें महान गुणोंसे युक्त चारणश्रमणोंको मैंने और आपने भी उत्कट भक्तियगसे वन्दन किया था। (६४-६५) हे महायश ! जिस प्रकार मंत्रवादी सर्पको वशमें करता है उसी प्रकार आपने पद्मसरोवरके निर्मल जलमें मद झरते हुए गण्डस्थलवाले वन्य हाथीको वशमें किया था। (६६) हे स्वामी ! पुष्पोंके भारसे झुकी हुई, मीठी गन्धवाली तथा भौरोंके संगीतसे शब्दायमान ऐसी चन्दनलताका आपने भुजाओंसे आलिंगन किया था। (६७) पद्मसरोवरके तटपर ठहरी हुई मुझे कुछ ईर्ष्यावश आपने अत्यन्त कोमल हाथों द्वारा पासमें आये हुए कमलनालसे आहत किया था। (६८) हे नाथ ! पर्वतके ऊपर मेरे पूछनेपर आपने कहा था कि भद्रे! ये जो नीले और घने पत्तोंसे युक्त पेड़ हैं वे नन्दिद्रम हैं। (६६) कर्णरवा नदीके तीरपर मध्याह्नके समय हम दोनोंने भक्तिपूर्वक साधुओंको दान दिया था। (७०) उस समय 'अहो दान!-ऐसी घोषणा हुई थी, स्वर्णसे युक्त रत्नवृष्टि हुई थी, मीठी गंधसे सुगन्धित पवन बहा था तथा देवोंने दुन्दुभि बजाई थी। (७१) उस समय तेजसे प्रज्वलित यह चूड़ामणि प्राप्त हुआ था। हे कपिध्वज! यह अभिज्ञान मेरे प्रियके पास तुम ले जाओ। (७२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432