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५७. २]
५७. इत्थ- पत्थवहणपव्वं
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भीमो कयम्ब-विडवो, गयणाओ हवइ भीमणाओ य । सद्दूलकीलणो चिय, सीहबलङ्गो विलङ्गो य ॥ ३८ ॥ पल्हायणो य चवलो, चल-चञ्चलमाइया इमे सुहडा । लङ्काओ निप्फिडिया, रहेसु मायङ्गजुत्तेसु ॥ अने य बहू, सुहडा हं केत्तिया परिकहेमि । अह अद्धपञ्चमाओ, कोडीओ वरकुमाराणं ॥ एएसु य अन्नेसु य, कुमारसीहेसु परिमिओ एत्तो । घणवाहणेण समयं, विणिग्गओ इन्दई सिग्धं ॥ जोइप्पहं विमाणं, आरुहिऊणं तिसूलगहियकरो । बहुसुहडकयाडोवो, विणिग्गओ भाणुकण्णो वि ॥ पुप्फविमाणारूढो, विणिग्गओ रावणो सह बलेणं । रहमुट्ठिएण पुहईं, आपूरन्तो गयणमम्गं ॥ रह-गय-तुरङ्गमेसु य, मय-महिस, वराह-वग्घ- सीहेसु । खर - करह - केसरीसु य, आरूढा निम्गया सुहडा ॥ अह रावणस्स सहसा, समुट्टिया दारुणा समुप्पाया । अन्ने य बहुवियप्पा, रडन्ति अजयावहा उणा ॥ माण अमरिसेण य, मूढा जाणन्तया वि अवसउणे । तह वि य विणिग्गया ते जुज्झत्थं निसियरा सबे ॥ एवं सबे पहरणकरा बद्धसन्नाहदेहा, नाणाचिन्धा पचलियधया कुण्डलोहट्टगण्डा । जाणारूढा नणियहरिसा एगसंगामचित्ता, संछायन्ता विमलगयणं निग्गया सूरवीरा ॥ ४७ ॥ ॥ इय पउमचरिए रावणबलनिग्गमणं नाम छप्पन्नं पव्वं समत्तं ॥
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५७. हत्थ - पहत्थवहणपव्वं
दट्ठण रक्खसबलं, उंबेलं सायरं व एज्जन्तं । रह-गय-तुरंगसहिया, सन्नद्धा वारा सबे ॥ १ ॥ राहवकज्जुज्जुत्ता, नल-नीलय - हणुय-नम्बवन्ता य । गयवरजुत्तेसु इमे, विणिग्गया सन्दणवरेसु ॥ २ ॥ शार्दूलक्रीडन, सिंहबलांग, विलंग, प्रह्लादन, चपल, चल, चंचल आदि - ये सुभट हाथी जुते हुए रथोंमें बैठकर लंकामें से निकले । (३८-३६) इन तथा बहुत से दूसरे किन सुभटोंका में वर्णन करूँ ? साड़े चार करोड़ कुमारवर थे । (४०) इन तथा दूसरे कुमारवरोंसे घिरा हुआ इन्द्रजित घनवाहनके साथ शीघ्र ही निकला । ( ४१ ) ज्योतिष्प्रभ विमानमें आरूढ़ होकर हाथ में त्रिशूलधारी भानुकर्ण भी बहुतसे सुभटोंके आडम्बरके साथ चल पड़ा । (४२) वेगसे उठनेके कारण पृथ्वी और आकाशमार्गको भरनेवाला रावण पुष्पक विमानमें आरूढ़ हो सेनाके साथ निकल पड़ा । (४३) रथ, हाथी, घोड़े तथा मृग, महिष, वराह, व्याघ्र, सिंह, गधे, ऊँट और सिंहों पर सवार हो दूसरे सुभट भी निकल पड़े। (४४) तब सहसा रावणको दारुण उत्पात होने लगे और दूसरे भी बहुत प्रकारके पराजय सूचक पक्षी रोने लगे । (४५) अपशकुनोंको जानते हुए भी वे सब मूढ़ राक्षस अभिमान एवं क्रोधके वशीभूत होकर युद्धके लिए निकले। (४६) इस प्रकार हाथमें प्रहरण लिए, शरीर पर सन्नाह धारण किये, नाना चिह्नोंवाले, उड़ती हुई ध्वजाओंसे युक्त, कुण्डल समूह जिनके कपोलों पर स्थित हैं ऐसे, वाहनों पर सवार, हर्षित तथा युद्धमें ही एकाग्र चित्तवाले सब शूरवीर विमल आकाशको छाते हुए निकले । (४७) ॥ पद्मचरितमें रावण-सैन्यका निर्गमन नामक छप्पनवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥
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५७. हस्त एवं प्रहस्तका वध
उछलते हुए सागरकी भाँति आते हुए राक्षस- सैन्यको देख रथ, हाथी एवं घोड़ोंके साथ सब वानर तैयार हो गये । (१) रामके कार्यके लिए उद्यत नल, नील, हनुमान और जाम्बवन्त – ये उत्तम हाथियोंसे जुते हुए श्रेष्ठ रथोंमें बैठकर निकल पड़े । (२) जयमित्र, समान, चन्द्राभ, रतिविवर्धन, रतिवर्धन, कुमुदावर्त, महेन्द्र, महात्मा प्रियंकर, अनुद्धर, दृढ़रथ १. सव्वेलं - प्रत्य० ।
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