Book Title: Paumchariyam Part 1
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad
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३६८
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पउमचरियं
जयमित्तो य समाणो, चन्दाभो रइविवद्धणो चेव । रइवद्धणो य एत्तो, कुमुयावत्तो महिन्दो य ॥ ३ ॥ पीईकरो महप्पा, अणुद्धरो दढरहो तहा सूरो । जोइप्पिओ बलो वि य, महाबलो अइबलो चेव ॥४॥ दुब्बुद्धि सबसारो, सबदसरहो तओ य आहट्ठो । अविणट्ठो संतासो, नाडो वि य बब्बरो सूरो ॥५॥ अह विग्घसूयणो वि य, बागेलोलो य मण्डलोय तहा। रणचन्दो चन्दरहो, कुसुमाउह, कुसुममालो य ॥ ६॥ पत्थारो हिमअलोय अङ्गओ तह य चेव पियरूवो । एए रहेसु सुहडा, विणिग्गया हथिजुत्तेसु ॥ ७॥ सुहडोय पुण्णचन्दो, दुप्पेक्खो सुविहि सायरसरो य । पियविग्गहो य खन्दो. वजंसू अप्पडिग्घाओ ॥ ८ ॥ दुट्ठो कुटुगइरवो, तह चन्दणपायवो समाही य । बहुलो य कित्तिनामो, किरीड इन्दाउहो धीरो ॥९॥ गयवरतासो अह संकडो य पहरादओ य सामन्ता । एए रहेसु सिग्घ, गयसंजुत्तेसु निप्फिडिया ॥ १० ॥ सीलोय विज्जुनयणो, बलोसपक्खो घणो य रयणो य । सम्मेओ विचलो विय, सालो कालो खितिधरोय ॥ ११ ॥ लोलो विकलो कालो, कलिङ्ग-चंडंसु-उज्झिओ कीलो । भीमो भीमरहो वि य, तरङ्गतिलओ सुसेलोय ॥ १२ ॥ तरलो बली य धम्मो, मणहरणो महसुहो पमत्तो य । मद्दो मत्तो सारो, रयणजडी दूसणो कोणो ॥ १३ ॥ अह भूसणो य वियडो, विराहिओ मणुरणोखणक्खेवो । नक्खत्तलुद्धनामो, विजओ य नओय संगामो ॥ १४ ॥ खेओ तहा-ऽरिविजओ, सुहडा नक्खत्तमालमाईया । एए रहेसु सिग्घ, विणिग्गया आसजुत्तेसु ॥ १५ ॥ तडिवाहो मरुवाहो, रविमाणो जलयवाहणो भाणू । राया पयण्डमाली, रहेसु घणसन्निभेसु इमे ॥ १६ ॥ जोइप्पभं विमाणं, तं चेव बिभीसणो समारूढो । अन्ने वि एवमाई, भणामि सुहडा समासेणं ॥ १७ ॥ कन्तो य जुज्झवन्तो, अह कोमुइनन्दणो य वसभो य । कोलाहलो य सूरो, पभाविओ साहुवच्छल्लो ॥ १८ ॥ जिणपेम्मो रहयन्दो, जसोयरो सागरो य जिणनामो । सुहडा य जिणमयाई, एए वि विमाणमारूढा ॥ १९ ॥ पउमो सोमित्ती वि य, सुग्गीवो जणयनन्दणो चेव । एए नरिन्दवसभा, सविमाणा संठिया गयणे ॥ २० ॥
नाणाउहगहियकरा, नाणाविवाहणेसु आरूढा । लङ्काहिमुहा चलिया, कइद्धया सहरिसुच्छाहा ॥ २१ ॥ सूर्य, ज्योतिःप्रिय, बल, महाबल, अतिबल, दुर्बुद्धि, सर्वसार, सर्वद, शरभ, आहृष्ट, अविनष्ट, संत्रास, नाड, बर्बर, शूर, विघ्नसूदन, बाल, लोल, मण्डल, रणचन्द्र, चन्द्ररथ, कुसुमायुध, कुसुममाल, प्रस्तार, हेमांग, अंगद तथा प्रियरूप-ये सुभट हाथियोंसे जुते रथोंपर बैठकर निकले । (३-७) सुभट पूर्णचन्द्र, दुष्प्रेक्ष, सुविधि, सागरस्वर, प्रिय विग्रह, स्कन्द, वांशु, अप्रतिघात, दुष्ट, क्रुष्टगतिरव, चन्दनपादप, समाधि, बहुल, कीर्ति, किरीट, धीर इन्द्रायुध, गजवरत्रास, संकट तथा प्रहर आदि सामन्त-ये हाथियोंसे जुते रथोंमें बैठकर जल्दी ही बाहर निकले । (८-१०) शील, विद्यन्नयन, बल, स्वपक्ष, धन, रत्न, सम्मेत, चल, शाल, काल, क्षितिधर, लोल, विकल, काल, कलिंग, चण्डांशु, उज्झित, कील, भीम, भीमरथ, तरंगतिलक, सुशैल, तरल, बली, धर्म, मनोहरण, महासुख, प्रमत्त, भद्र, मत्त, सार, रत्नजटी, दूषण, कोण, भूषण, विकट, विराधित, मनुरण, क्षणक्षेप, नक्षत्र, लुब्ध, विजय, जय, संग्राम, खेद, अरिविजय तथा नक्षत्रमाल आदि-ये सुभट गोड़ोंसे जुते रथोंमें बैठकर जल्दी ही निकले । (११-५) तडिद्वाह, मरुद्वाह, रविमान, जलवाहन, भानु, राजा प्रचण्डमाली-ये बादल सरीखे रथोंमें बैठकर निकले। (१६) ज्योतिःप्रभ नामक उस विमानमें बिभीषण सवार हुआ। ऐसे ही दूसरे सुभटोंके बारेमें संक्षेपसे मैं कहता हूँ। (१७) कान्त, युद्धवान्, कौमुदीनन्दन, वृषभ, कोलाहल, सूर्य, प्रभावित, साधुवत्सल, जिनप्रेम, रथचन्द्र, यशोधर, सागर, जिननाम तथा जिनमत आदि ये सुभट विमानमें आरूढ़ हुए। (१८-९) राम, लक्ष्मण, सुग्रीव और जनकनंदन भामण्डल-नरेन्द्रोंमें वृषभके समान उत्तम ये सब अपने-अपने विमानों में बैठकर आकाशमें स्थित हुए। (२०) नानाविध आयुध हाथमें धारण किये हुए और नानाविध वाहनोंमें सवार कपिध्वज वानर हर्ष और उत्साहके साथ लंकाकी ओर चले । (२१)
१. पीयंकरो-प्रत्य०। २. चन्दाहो--प्रत्यः ।
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