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४५. सीयाविप्पओगदाहपव्वं ताव पणा कार्ड, विराहिओ भणइ सविणयं सामि ।। अम्हं तुमं महानस !, आणत्ति देह कज्जेसु ॥ एवं च भणियमेचे, पुच्छइ लच्छीहरं पउमणाहो । साहेहि वच्छ! एसो, कस्स सुओ ? किं च नाम से ? ॥ चन्दोयरस्स पुत्तो, नामेण विराहिओ इमो सामि । । जुज्झन्तस्स रणमुहे, मज्झ सयासं समणुपत्तो ॥ एएण रिवुबलं तं, साहणसहिएण रणमुहे भग्गं । खग्गरयणेण सत्तू, मए वि खरदूसणो निहओ ॥ अह भइ लच्छीनिलओ, विज्जाहर ! कारणं सुणसु एत्तो। मह गुरवस्स महिलिया, केण वि हरिया महारण्णे ॥ ती विरहम्मि इमो, वच्छय ! जइ चयइ अत्तणो नीयं । तो हैं हुयवहरासिं, पविसामि न एत्थ संदेहो ॥ एयरस जीवियबे, किंचि उवायं करेहि मुणिऊणं । सीयागवेसणपरो, वच्छ! सहीणो तुमं होहि ॥ एव भणिओ पत्तो, चन्दोयरनन्दणो निययभिच्चे । 'सीया लहु गवेसह, तुम्हे हि जल-स्थला - ऽऽगासे ॥ एव भणिया पयट्टा, सुहडा सन्नद्धबद्धतोणीरा । सीयागवेसणट्टे, दस वि दिसाओ पवणवेगा ॥ अह अक्कनडिस्स सुओ, रयणनडी नाम खेयरो गयणे । सायरवरस्स उवरिं, सुणइ पलावं महिलियाए ॥ हा रामदेव ! लक्खण !, धरेहि बन्दी इमेण हीरन्ती । सुपरिप्फुडं च सर्छ, सोउं रुट्टो रयणकेसी ॥ पेच्छइ पुष्पविमाणे, हीरन्ती रावणेण वइदेही । भणइ य रामस्स पियं, दुट्ट ! कहिं नेसि मह पुरओ ? ॥ सो एव भणियमेत्तो, दसाणणो तस्स निययविज्जाओ । अवलोयणीऍ नाउं छिन्दइ मन्तप्पभावेणं ॥ अह सो विरिकविज्जो, कम्बुद्दीवम्मि तक्खणं पडिओ । आरुहइ कम्बुसेलं, समुद्दवाएण आसत्थो ॥ जे वि य ते तत्थ गया, गवेसिऊणं च आगया सिग्धं । रामस्स कहन्ति फुड, न सामि ! तुह गेहिणी दिट्ठा ॥
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कहा कि किसीने मेरी कान्ताका अपहरण किया है । (१८) उसी समय प्रणाम करके विराधितने विनयपूर्वक कहा कि, हे स्वामी ! हे महायश आपका सेवक हूँ । कार्यके लिए आप मुझे आज्ञा दें । (१९) इस प्रकार कहनेपर रामने लक्ष्मणसे पूछा कि, हे वत्स ! यह किसका पुत्र है और इसका क्या नाम है, यह मुझे तुम कहो । (२०) तब उसने कहा कि, हे स्वामी ! चन्द्रोदरका विराधित नामका यह पुत्र युद्धभूमिमें लड़ते समय मेरे पास आया था । (२१) सेनासे युक्त इसने युद्धक्षेत्र में शत्रुकी सेनाको नष्टकर डाला। मैंने भी खड्गरत्नसे शत्रु खरदूषणको मार डाला है। (२२) इसके बाद लक्ष्मणने कहा कि, हे विद्याधर तुम कारण सुनो। मेरे बड़े भाई रामकी पत्नीका किसीने इस महारण्य में अपहरण किया है । (२३) हे वत्स ! उसके विरह में यदि वे अपने प्राण छोड़ देंगे तो मैं भी आगकी राशिमें ( अर्थात् चितामें ) प्रवेश करूँगा, इसमें सन्देह नहीं है । (२४) हे वत्स ! सोच-विचार करके इनके जीवनके लिए कोई उपाय करो । तुम सख्यभावसे सीताकी खोज में तत्पर बनो । (२५)
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ऐसा कहनेपर विराधितने अपने भृत्योंको आज्ञा दी कि जल, स्थल एवं आकाशमें तुम सीताको जल्दी ही खोजो । (२६) इस तरह कहे गये सुभट कवच पहनकर और तरकश बाँधकर सीताकी गवेषणाके लिए पवनवेगसे चल पड़े। (२७)
अर्कजाटी के पुत्र रत्नजटी नामके खेचरने सागरके ऊपर आकाशमें किसी स्त्रीका रुदन सुना । (२८) 'हा रामदेव ! हा लक्ष्मण ! बन्दी और इसके द्वारा अपहरण की जाती मुझे बचाओ' - ऐसा स्पष्ट शब्द सुनकर रत्नकेशी क्रुद्ध हो गया । (२९) उसने रावणके द्वारा अपहरण की जाती वैदेहीको पुष्पक विमानमें देखा। उसने कहा कि, हे दुष्ट ! रामकी प्रियाको मेरे सामने तू कहाँ ले जा रहा है ? (३०) इस प्रकार कहे गये उस रावणने अपनी अवलोकिनी विद्यासे उसकी नियत विद्याओंके बारेमें जानकर मंत्र प्रभावसे उसे विद्यारहित कर दिया । (३१) विद्याशून्य वह तत्क्षण कम्बुद्वीपमें जा गिरा। समुद्रकी वायुसे होशमें आया हुआ वह कम्बुशैलपर चढ़ा । (३२)
जो खोजने गये थे वे शीघ्र ही वापस लौट आये। रामसे उन्होंने स्पष्ट रूपसे कहा कि, हे स्वामी ! आपकी गृहिणीको १. सीयं - प्रत्यः ।
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