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३३२ पउमचरियं
[४८. १४इह कुञ्चपुरे नयरे, राया परिवसइ निग्गयपयावो । नामेण जक्खसेणो, राइला गेहिणी तस्स ॥ १४ ॥ पुत्तो य जक्खदत्तो, सो विहरन्तो कयाइ वरजुवई । दट्ट ण पायडत्यं, विद्धो कुसुमाउहसरेहिं ॥ १५॥ तीप कए कुमारो, असिवरहत्थो निसासु वच्चन्तो । मुणिणा अवहिपरेणं, तरुमूलत्थेण पडिरुद्धो ॥ १६ ॥ दट्ठ णुवयाररय, साहु परिपुच्छई कुमारवरो । साहेहि कोउयं , किं वञ्चन्तो तए रुद्धो! ॥ १७ ॥ सो भणइ तुज्झ जणणी, सा जुवई जीएँ वच्चसे पासं । तेण वि य पुच्छिओ सो, भयवं! साहेहि परमत्थं ॥ १८ ॥ अह मत्तियावईए, कणगो नामेण तत्थ वाणियओ । धन्ना तस्स महिलिया, पुत्तो वि य बन्धुदत्तो से ॥ १९॥ तत्थ लयादत्तसुया, मित्तमई बन्धुदत्तवणिएणं । परिणेऊण कओ से, गब्भो न य कर्णई नाओ ॥ २० ॥ पोएण पत्थिओ सो, सा वि य ससुरेण दुट्ठचारित्ता । काऊण य निच्छूटा, उप्पलियाए सह सहीए ॥ २१ ॥ अणुमग्गेण रियन्ती, दइयस्स य अन्नमन्नसत्वेणं । बालसही उप्पलिया, अहीण दट्ठा मया रण्णे ॥ २२ ॥ काऊण विप्पलावं, सीलसहाई तओ य संपत्ता । एयं कुश्चवरपुरं, पवरुज्जाणे पसूया सा ॥ २३ ॥ कम्बलरयण सुर्य, परिवेढेऊण पत्थिया सलिलं । अङ्गाणि जाव घोवइ, सुणएण हिओ तओ बालो ॥ २४ ॥ मित्तेण बालओ सो, घेत्तृण समप्पिओ नरिन्दस्स । तेण वि राइलाए, दिन्नो चिय निययभज्जाए ॥ २५ ॥ 'नामेण नक्खदत्तो, सो हु तुम नत्थि एत्थ संदेहो । पडियागया न पेच्छइ, सा वि तहिं काणणे बालं ।। २६ ॥ देवच्चएण दिट्टा, मित्तमई पगलियंसुनयणजुया । बहिणी-पभासिऊणं, नीया सा अत्तणो गेहं ॥ २७ ॥ लज्जाएँ पिइहरं सा, न गया जिणधम्मसीलसंपन्ना । इह नयरबाहिरत्था, विहरन्तेणं तमे दिट्ठा ॥ २८ ॥ कम्बलरयणेण तुम, जेणं चिय वेढिओ सिसू तइया । तं अच्छह अहिनाणं, कुमार ! नक्खस्स भवणम्मि ॥ २९ ॥
यहाँ क्रौंचपुर नगरमें चारों ओर फैले हुए प्रतापवाला यक्षसेन नामका राजा रहता था। उसकी गृहिणीका नाम राजिला था। (१४) उसका पुत्र यक्षदत्त था। कभी विहार करता हुआ वह प्रांगणमें बैठी हुई एक सुन्दर युवतीको देखकर कामदेवके बाणोंसे विद्ध हो गया। (१५) उसके लिए हाथमें तलवार लेकर रातके समय जाते हुए कुमारको वृक्षके नीचे स्थित अवधिज्ञानी मुनिने रोका। (१६) उपकार करने में निरत साधुसे कुमारने पूछा कि मुझे यह जाननेकी इच्छा हो रही है कि जाते हुए मुझको आपने क्यों रोका ? आप इस बारेमें कहें । (१७) उसने कहा कि जिसके पास तुम जा रहे हो वह युवती तुम्हारी माता है। इस पर उसने भी पूछा कि, भगवन् ! सत्य वृत्तान्त भाप कहें। (१८) तब उन्होंने कहा कि मृत्तिकावती नगरीमें कनक नामका एक बनिया था। उसे धन्या नामकी पत्नी तथा बन्धुदत्त नामका पुत्र था। (१९) वहाँ लतादत्तकी पुत्री मित्रवती थी। वणिक् बन्धुदत्तने उसके साथ विवाह करके उसे गर्भवती की, किन्तु किसीने यह जाना नहीं। (२०) बादमें उसने जहाजसे प्रस्थान किया। श्वसुरने उस मित्रवती को दुष्ट चरित्रवाली मानकर उत्पलिका सखीके साथ उसे बाहर निकाल दिया। (२१) भिन्न भिन्न सार्थोके साथ पतिके पीछे पोछे जाने पर उसकी बालसखी उत्पलिकाको सर्पने काट लिया और वह इस अरण्यमें मर गई । (२२) रो-धोकर शीलकी सहायतावाली वह इस क्रौंचपुरमें आई और उत्तम उद्यानमें उसने प्रसव किया। (२३) उत्तम कम्बलसे पुत्रको लपेटकर वह जलाशयके पास गई। जब वह अंग घो रही थी तब एक कुत्ता बचे को उठा ले गया। (२४) किसी मित्रने उस बालकको उठाकर राजाको दिया। उसने भी अपनी भार्या राजिलाको दिया । (२५) इसमें सन्देह नहीं है कि यक्षवत्त नामके तुम यही हो। लौटी हुई उसने सस उद्यानमें बालकको नहीं देखा । (२६) पुजारीने दोनों आँखोंसे आँसू बहाती हुई मित्रवतीको देखा। बहन कहकर उसे वहभपने घर ले गया। (२७) जिनधर्मके शीलसे सम्पन्न वह लग्नावश नैहर नगई। यही नगरके बाहर ठहरी हुई उसको विहार करते हुए तुमने देखा । (२८) हे कुमार! उस समय शिशुरूप तुम जिस कम्बरलसे लपेटे गये ये वह पहिचान यक्षके भवनमें है। (२९)
१. परजुवई-प्रत्य० । २. केणई मुणियो-प्रत्यः ।
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