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४७.४२]
४७. सुग्गीवक्खाणपव्वं सोऊण तस्स बयणं, अप्पडिघाएण वरविमाणेणं । हणुओ किक्किन्धिपुरं, गओ य सिग्छ सह बलेणं ॥ २६ ॥ सोऊण पवणपुतं, समागयं अलियवाणराहिवई । निप्फिडइ गयारूढो, बलेण समयं महन्तेणं ॥ २७ ॥ दोण्ह पि ताण रूवं, सरिसं दट्ठण अक्षणातणओ । अमुणियविसेसनिहसो, निययपुरं पत्थिओ सिग्धं ॥ २८॥ हणुए निययपुरगए, सुग्गीवो भयसमाउलो एत्तो । राघव! तुमं पवन्नो, एयस्स करेहि सामत्थं ॥ २९ ॥ भणइ तओ पउमनाभो, अहयं साहेमि कारणं तुझं । सुग्गीव! मज्झ वि तुम, सीयाए लभसु पडिवत्तिं ॥ ३० ॥ सुग्गीवो भणइ पहू !, जह तुह महिलाए सत्तमे दिवसे । न लभामिऽह पडिवत्ति, पविसामि हुयासणे तो हं॥ ३१ ॥ सुणिऊण वयणमेयं, अहियं आसासिओ पउमनाहो । पप्फुल्लकमलनेत्तो, जाओ रोमञ्चियसरीरो ॥ ३२ ॥ अह ते जिणभवणस्था, समयं काउं अदोहबुद्धीया। नीया वाणरवइणा, किकिन्धी राम-सोमित्ती ॥ ३३ ॥ पुणरवि य आगओ सो, कूडो नाऊण सच्चसुमगीवं । निययबलसंपरिवुडो, अहिमुहहूओ रहारूढो ॥ ३४ ॥ आलागो संगामो, उभयभडाडोवसंकडुत्तासो । सुग्गीवो सुग्गीवं, पहणइ गाढप्पहारेसु ॥ ३५ ॥ असि-कणय-चक-तोमर-संघट्टटुन्तसत्थसंघाए । रामो सरं न मुञ्चद, ताण विसेसं अयाणन्तो ॥ ३६ ॥ ताहे गयाएँ पहओ, कूडेणं तत्थ सञ्चसुग्गीवो। मुच्छानिमीलियच्छो, पडिओ महिमण्डले सिग्घं ॥ ३७॥ पडियं दद्दू ण रणे, किकिन्धी रियइ अलियसुम्गीवो । बन्धवजणेण निययं, सुग्गीवो आणिओ सिबिरं ॥ ३८ ॥ अह भणइ समासत्थो, सुम्गीवो सामि! वेरिओ इहई। आगन्तूण पुण गओ, किं न तुमे सो हओ पावो? ॥ ३९ ॥ भणइ तओ पउमाभो, तुम चिय एत्थ जुज्झमाणाणं । न य जाणिओ विसेसो, तेण मए नाहओ सरिसो ॥ ४०॥ सुम्गीव! पुणरपि तुम, तं दुटुं दिट्ठिगोयरे मझं । ठावेहि जेण पेच्छसु, अचिरा भिन्नं सरसएसु ॥ ४१॥
सुम्गीवेणाऽऽडूओ, समागओ दुट्टवाणराहिवई । रामेण समरमज्झे, रुद्धो मेहो इव नगेहिं ।। ४२ ॥ शीघ्र ही किष्किन्धिपुरीको गया। (२६) पवनपुत्र हनुमानका आगमन सुनकर झूठा वानरनरेश हाथी पर सवार हो बड़े भारी सैन्यके साथ बाहर आया । (२७) उन दोनोंका समान रूप देखकर हनुमानने विशेष कसौटी न जाननेसे अपने नगरकी ओर जल्दी ही प्रस्थान किया। (२८) हे राघव! हनुमानके अपने नगरमें चले जानेके कारण भयसे व्याकुल सुग्रीव अब आपकी शरणमें आया है। आप इसका विचार करें। (२९) . तब रामने कहा कि हे सुग्रीव ! मैं तुम्हें सहायता करूँ और तुम सीताकी खबर मुझे ला दो। (३०) सुग्रीवने कहा कि,हे प्रभो! यदि आपकी पत्नीका समाचार मैं सातवें दिन तक न ला सका तो मैं आगमें प्रवेश करूँगा। (३१) यह कथन सुनकर अधिक आश्वस्त रामकी आँखें कमलके समान प्रफुल्लित हो गई तथा शरीर रोमांचित हो गया । (३२) जिन भवनमें स्थित तथा अद्रोहबुद्धिवाले वे राम एवं लक्ष्मण सन्धि करके सुग्रीव द्वारा किष्किन्धिमें लाये गये। (३३) सच्चे मुग्रीवको बाया जान अपनी सेनासे घिरे हुए तथा रथ पर आरूढ उस मिथ्या-सुग्रीवने सामना किया। (३४) दोनों पक्षोंके सुभटोंके आटोपसे संकीर्ण और डरावना ऐसा युद्ध होने लगा। सुग्रीव सुग्रीवको दृढ़ पहारोंसे मारने लगा । (३५) तलवार, कनक, चक्र एवं तोमरोंके टकरानेसे और ऊपर उछलनेवाले शस्त्रोंके संघातसे युक्त उस युद्ध में उनके बीच भेद न जाननेवाले रामने बाण नहो फेंका । (३६) तब कष्ट पूर्वक गदासे आहत सत्य-सुप्रीव मूर्छासे विह्वल हो जमीन पर शीघ्र ही गिर पड़ा। (३७) युद्धमें सत्य-सुग्रीवका पतन देखकर झूठा-सुग्रीव किष्किन्धिमें चला गया। अपने बन्धुजनों द्वारा सुप्रीव शिविरमें लाया गया। (३८) होशमें आनेपर सुग्रीवने कहा कि, हे स्वामी! शत्रु यहाँ आकर पुनः चला गया। उस पापीको
आपने क्यों नहीं मारा ? (३६) तब रामने कहा कि यहाँ लड़ते हुए तुम दोनोंमें मैं भेद नहीं जान सका। इस वजहसे सदृशका मैं वध नहीं कर सका । (४०) हे सुग्रीव ! तुम पुनः उस दुष्टको मेरी आँखोंके समक्ष उपस्थित करो, जिससे तुम अविलम्ब ही सैकड़ों बाणोंसे उसे भिन्न देखोगे । (४१) सुप्रीवके द्वारा ललकारा गया वह दुष्ट वानराधिपति वापस लौटा।
१-२. किक्किन्धि-प्रत्य। ४२
मुनीषको आटोपसे सटकरानेसे
कष्ट पूर्व
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