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पउमचरियं
अह ते कमेण पत्ता, हरि-गय-रुरु- चमर सरहसद्दालं । घणपायवसंछन्न, अडविं चिय पारियत्तस्स ॥ पेच्छेन्ति तत्थ भीमा, बहुगाहसमाउला नलसमिद्धा । गम्भीरा नाम नदी, कल्लोलुच्छलियसंघाया ॥ तो राघवेण भणिया, सुहडा सबे वि साहणसमग्गा । तुम्हे नियत्तियां, एयं रणं महाभीमं ॥ ताण भरहसामी, ठविओ रज्जम्मि सयलपुहईए । गच्छामि दाहिणपहं, अवस्स तुब्भे नियत्तेह ॥ अन्ति सुडा, सामि ! तुमे विरहियाण किं अम्हं । रज्जेण साहणेण य, विविहेण य देहसोक्खेणं ? ॥ सीह-ऽच्छभल्ल-चित्तय-घणपायव - गिरिवराउले रण्णे । समयं तुमे वसामो कुणसु दयं असरणाणऽम्हं ॥ आउच्छिऊण सुहडे, सीयं भुयावगृहियं काउं । रामो उत्तरइ नई, गम्भीरं लक्खणसमग्गो ॥ रामं सलक्खणं ते, परतीरावट्ठियं पलोएडं । हाहारवं करेन्ता, सबे वि भडा पडिनियत्ता ॥ तेहि नियतेहि तर्हि, दि चिय जिणहरं महातुङ्गं । समणेहि संपरिवुडं, तत्थ पविट्टा सुहडसीहा ॥ काऊण नमोक्कारं, निणपडिमाणं विसुद्धभावेणं । पणमन्ति मुणिवरिन्दे, अणुपरिवाडीऍ तिविहेणं ॥ पुच्छन्ति साहवं ते, भयवं ! संसारसायरं भीमं । उत्तारेहि महाजस ! अम्हे जिणधम्मपोषणं ॥ तो साहवेण धम्मो, कहिओ संखेवओ जिणुद्दिट्टो । जह तक्खणेण जाया, निद्दको विजओ वि य, मेहकुमारो तहेव रणलोलो । नागदमणो य वीरो, सढो य सत्तूद्रमधरो य तह कङ्कडो विणोओ, सबो पियवद्धणो कढोरो य । एवंविहा नरिन्दा, निग्गन्थसिरी समणुपत्ता अन्ने पुण गिहधम्मं घेत्तूण नराद्दिवा विसयहुत्ता | पत्ता साएयपुरी, भरहस्स फुडं निवेएन्ति ॥ सोया - लक्खणसहिओ, न नियत्तो राघवो गओ रण्णं । सोऊण वयणमेयं, भरहो अइदुखिओ जाओ ॥
१८ ॥ १९ ॥
संवेगपरायणा बहवे ॥
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१. पेच्छन्ति तत्थ भीमं बहुगाहसमाडलं जलसमद्ध
३. सिरिं प्रत्य० ।
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और चार आँखोंवाला सिंह जैसा वन्य पशु ) से शब्दायमान तथा सघन वृक्षोंसे आच्छन्न ऐसे पारियात्र ( देश - विशेष ) के जंगलमें आ पहुँचे । (१०) वहाँ उन्होंने भयंकर, बहुत-से मगरमच्छों से व्याप्त, जलसे समृद्ध तथा जिसमें तरंगों का समूह उठ रहा है ऐसी गम्भीरा नामकी नदी देखी (११) तत्र राघवने सैन्यसे युक्त सब सुभटोंसे कहा कि यह अरण्य अत्यन्त भयंकर है, अतः तुम्हें लौटना चाहिए। (१२) पिताने सकल पृथ्वी के स्वामी रूपसे भरतराजको स्थापित किया है। मैं अब दक्षिणापथको जाता हूँ । तुम सब अवश्य लौट जाओ। (१३) तब सुभटोंने कहा - स्वामी ! तुम्हारे बिना राज्य, सैन्य और नाना प्रकार के देहसुख से क्या प्रयोजन है ? (१४) सिंह, रोळ-भालू, चीते तथा सघन वृक्षों एवं पर्वतोंसे व्याप्त अरण्यमें हम आपके साथ रहेंगे। अशरण हम पर आप दया करें। (१५) इस प्रकार सुभटोंकी अनुज्ञा लेकर और सीताको हाथोंसे अवलम्बन देकर रामने लक्ष्मणके साथ गम्भीरा नदी पार की। (१६) सामनेके किनारे पर स्थित राम एवं लक्ष्मणको देखकर हाहारव करते हुए वे सब सुभट वापस लौटे। (१७) लौटते हुए उन्होंने वहाँ साधुओंसे भरा हुआ एक अत्यन्त उन्नत जिनमन्दिर देखा । उन सुभटसिंहोंने उसमें प्रवेश किया । (१८) विशुद्ध भावसे जिनप्रतिमाओंको वन्दन करके उन्होंने अनुक्रम से मुनिवरोंको मनसा, वाचा एवं कर्मणा तीन प्रकारसे वन्दन किया । (१९) उन्होंने साधुओंसे पूछा कि, हे भगवन् ! हे महाशय ! जिन धर्मरूपी नौका द्वारा संसाररूपी भयंकर सागर से आप हमें पार उतारें। (२०) तब साधुने संक्षेप में जिनोपदिष्ट धर्म इस तरहसे कहा कि बहुत-से लोग उसी समय संवेगपरायण हो गये । (२१) निर्दग्ध, विजय, मेघकुमार, रणलोल, नागदमन, धीर, शठ, शत्रुदम, धर, कङ्कट, विनोद, शर्व, प्रियवर्धन और कठोर- इन तथा ऐसे ही दूसरे राजाओंने निर्मन्थशोभा प्राप्त की । (२२-२३) दूसरे राजाओंने विषयवासनाका होम करके गृहस्थधर्म अंगीकार किया। बाद में साकेतपुरीमें पहुँचकर उन्होंने भरतसे सारा वृत्तान्त ब्योरेवार कहा कि सीता एवं लक्ष्मणके साथ राम न लौटे और अरण्यमें चले गये । यह कथन सुनकर भरत अत्यन्त दुःखी हुआ । (२४-२५)
गंभीरं नाम नई कल्लोलुच्छलियसंघार्य - प्रत्य• । २. धोरो—प्रत्य
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