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२७. रामेण मेच्छपराजयस्स कित्तणं
वेयङ्कदाहिणेणं, कइलासगिरिस्स उत्तरदिसाए । देसा हवन्ति बहवे, गामा - SSगर नगरपरिपुणा ॥ ४ ॥ तत्थेव अत्थि देसो, एक्को च्चिय अद्धबब्बरो नामं । निस्संजम - निस्सीलो, बहुमेच्छसमाउलो घोरो ॥ ५ ॥ तत्थ य मऊरमाले, नयरे परिवसइ मेच्छनणपउरे । नामेण आयरङ्गो, राया जमसरिसददसत्तो ॥ ६॥ कम्बोय-सुय-कवोया, देसा अन्ने य सबरजणपउरा । एएस जे नरिन्दा, ते तणया आयरङ्गस्स || ७ || रामस्य अनार्यैः सह युद्धम् -
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अह अन्नयां कयाई, देसं जणयस्स बब्बरो राया । उव्वासिउं पयत्तो, चिलायसेन्त्रेण परिपुण्णो ॥ ८ ॥ सोऊण जणयराया, देसं उद्यासियं अणज्जेहिं । पेसेइ तुरियचवलं, पुरिसं चिय दसरहनिवस्स ॥ ९ ॥ तू पणमिण य, सबं मेच्छागमं परिकहेइ । देसविणासं च पुणो, जं चिय जणएण संदिहं ॥ १० ॥ सामिय! विन्नवइ तुमं, जणओ जणवच्छलो कयपणामो । मह अद्धबब्बरेहिं, सबो उबासिओ विसओ ॥ ११ ॥ सीय समणाय बहू, विद्धत्थाणि य निणिन्दभवणाणि । एयनिमितेण पहू!, एह लहुं रक्खणट्टाए ॥ भणिऊण एवमेयं रामं सद्दाविऊण नरवसभो । सबचलसमुदणं, रज्जं दाउँ समाढत्तो ॥ चामीयरकलसकरा, सूरा पडुपडह बन्दिघोसेणं । अहिलेय कारणट्टे, रामस्स अवट्टिया पुरओ ॥ रिसो, आडवं भणइ राहवो वयणं । किंकारणम्मि सुहडा, कलसविहत्था समल्लीणा ? ॥ तो दसरहो पत्तो, पुत्तय! मेच्छाण आगयं सेन्नं । पुहई पालेहि तुमं, तस्साहं अहिमुहो नामि ॥ भइ विहसन्तबयणो, रामो किं ताय ! पसुसरिच्छाणं । उवरिं नासि महानस !, पुत्तेण मए सहीणेणं ? ॥ सोऊण वयणमेयं, हरिसियहियओ नराहिवो भणइ । बालो सि तुमं पुत्तय !, कह मिच्छबलं रणे निणसि ? ॥
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वैताढ्य के दक्षिण में तथा कैलास पर्वतकी उत्तर दिशामें गाँव, आकर और नगरोंसे परिपूर्ण बहुतसे देश हैं । (४) उनमें संयम एवं शीलसे रहित, बहुतसे म्लेच्छों से व्याप्त और भयंकर अर्धबर्बर नामका एक देश है । (५) वहाँ म्लेच्छ लोगों से प्रचुर मयूरमाल नगरमें यम के सदृश अत्यन्त शक्तिशाली आयरंग नामका राजा रहता था । (६) कम्बोज, शुक और कपोत तथा दूसरे भी शबर लोगोंसे व्याप्त अन्य देश थे । उनमें जो राजा थे वे आयरंग के ही पुत्र थे । (७) एक दिन किरातसैन्यसे युक्त हो बर्बर राजा जनकका राज्य उजाड़ने लगा । ( 5 ) अनार्यों द्वारा उजाड़े गये देशके बारेमें सुनकर जनक राजाने जल्दी और तेज चलनेवाले एक पुरुपको दशरथके पास भेजा । (९) जाकर और प्रणाम करके म्लेच्छोंके आक्रमणके तथा देशके विनाशके बारेमें जनकने जो संदेश भेजा था वह सब उसने कह सुनाया (१०) हे स्वामी ! जनवत्सल जनक प्रणाम करके आपसे बिनती करते हैं कि मेरा सारा देश अर्धबर्बर ने उजाड़ दिया है । (११) बहुतसे श्रावक, श्रमण एवं जिनमन्दिर उसने विध्वस्त किये हैं। इस कारण, हे प्रभो ! रक्षाके लिए आप जल्दी आवें । ( १२ ) ऐसा उसने कहा ।
१. तावससमणगण ण य बहुविहाण य जिणिन्दभवणाण - प्रत्य० ।
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तब रामको बुलाकर सम्पूर्ण सैन्यसमुदायके साथ राजा दशरथ उन्हें राज्य देने लगा । (१३) स्वर्णकलश हाथमें धारण करके देवदुन्दुभि एवं बन्दीजनोंके पटु घोषके साथ शूर पुरुष अभिषेकके लिए रामके आगे खड़े हुए। (१४) ऐसा आडम्बर देखकर रामने कहा कि क्यों हाथमें कलश लेकर सुभट खड़े हैं ? (१५) तब दशरथने कहा कि, हे पुत्र ! म्लेच्छोंका सैन्य आया है। तुम पृथ्वीका पालन करो। उसका सामना करनेके लिए मैं जाता हूँ । (१६) इस पर हँसते मुखवाले रामने कहा कि, हे महायश ! मुझ पुत्रके रहते हुए पशुसदृश उनके ऊपर आक्रमणके लिए तात जाएँगे ? (१७) यह बचन सुनकर हृदय में हर्षित होते हुए राजाने कहा कि, हे पुत्र ! अभी तुम बच्चे हो । म्लेच्छके सैन्यको युद्धमें कैसे जीतोगे ? (१८)
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