Book Title: Paumchariyam Part 1
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 263
________________ २१० पउमचरियं ९५ ॥ जेऊण सुर्य समरे, तस्स य रज्जं महागुणं दाउँ । सोदासो पबइओ, कुणइ तवं बारसवियप्पं ॥ सोहरहस्स वि पुत्तो, बम्भरहो नरवई समुप्पन्नो । तस्स वि चउम्मुहो वि य, हेमरहो नसरहो चेव ॥ • पउमरहो य मयरहो, ससीरहो रविरहो य मन्धाओ । उदयरहो नरवसहो, वीरसुसेणो य पडिवयणो ॥ नामेण कमलबन्धू, रविसत्तू तह वसन्ततिलओ य । राया कुबेरदत्तो, कुन्थू सरहो य विरहो य ॥ रहनिग्घोसो य तहा, मयारिदमणो हिरण्णनाभो य । पुञ्जत्थलो य ककुहो, राया रघुसो य नायबो ॥ एवं इक्खागकुले, समइक्कन्तेसु नरवरिन्देसु । साएयपुरखरीए, अणरण्णो पत्थिवो जाओ ॥ ९.८ ॥ ९९ ॥ Jain Education International ९६ ॥ ९७ ॥ १०० ॥ दशरथ: १०२ ॥ १०३ ॥ १०४ ॥ १०५ ॥ तस्स महादेवीए पुहईए दो सुया समुप्पन्ना । पढमो य अणन्तरहो, बीओ पुण दसरहो जाओ ।। माहेसरनयरवई, मित्तं सोऊण सहसकिरणं सो । पबइओ निविष्णो, इमस्स संसारवासस्स ॥ अणरण्णो वि नरवई, पुत्तं चिय दसरहं ठविय रज्जे । निक्खमइ सुयसमग्गो, पासे मुणिअभयसेणस्स ॥ छम- दसम - दुवासेहि मास - ऽद्धमासखमणेहिं । काऊण तवमुयारं, अणरण्णो पत्थिओ मोक्खं ॥ साहू वि अणन्तरहो, अणन्तत्रल-विरिय-सत्तिसंपन्नो । संनम-तव-नियमधरो, जन्थत्थमिओ मही भमइ ॥ अरुहत्थले नरिन्दो, सुकोसलो तस्स चेव महिलाए । अमयप्पभाऍ धूया, कन्ना अवराइया नामं ॥ सा दसरहस्स दिन्ना, परिणीया तेण वरविभूईए । अह कमलसंकुलपुरे, सुबन्धुतिलओ निवो तत्थ ॥ मित्ता य महादेवी, दुहिया चिय केकई ललियरूवा । सा दसरहेण कन्ना, परिणीया नाम सोमित्ती ॥ १०८ ॥ एवं जुवईहि समं, परिमुञ्जइ दसरहो महारज्जं । सम्मत्तभावियमई, देव- गुरूपूयणाभिरओ ॥ १०९ ॥ कर उसके साथ भिड़ गया । उस समय भयंकर लड़ाई हुई । (९४) पुत्रको युद्धमें जीतकर और उसे अतिसमृद्ध राज्य देकर सौदासने प्रव्रज्या ली और बारह प्रकारका तप करने लगा । (९५) १०६ ॥ १०७ ॥ सिंहरथका पुत्र राजा ब्रह्मरथ हुआ । उससे भी चतुर्मुख, हेमरथ, यशोरथ, पद्मरथ, मृगरथ, शशिरथ, रविरथ, मान्धाता, राजा उदयरथ तथा प्रतिवचन क्रमशः हुए । इनके बाद कमल बन्धु, रविशत्रु, वसन्ततिलक, राजा कुबेरदत्त, कुन्थु, सरथ, विरथ, रथनिर्घोष, मृगारिदमन, हिरण्यनाभ, पुंजस्थल, कक्कुस्थ तथा रघु राजा जानने चाहिये । ( ९६-९) इस तरह इक्ष्वाकुकुल में राजाओंके होनेके बाद उत्तम साकेतपुरीमें अनरण्य राजा हुआ । (१००) उसकी पटरानी पृथ्वी से दो पुत्र पैदा हुए। पहला अनन्तरथ और दूसरा दशरथ हुआ । (१०१) माहेश्वर नगरीका राजा और अपना मित्र सहस्रकिरण दीक्षित हुआ है ऐसा सुनकर अनरण्यको इस संसारपर वैराग्य आया । (१०२) अनरण्य राजाने भी अपने पुत्र दशरथको राज्यपर स्थापित करके अनन्तरथ नामक पुत्रके साथ अभयसेन मुनिके पास दीक्षा ली । (१०३) बेला, तेला, दशम ( चार उपवास), द्वादश ( पाँच उपवास ), अर्धमासक्षमण ( पंद्रह दिनका उपवास ) और मासक्षमण ( एक महीनेका उपबास ) द्वारा घोर तप करके अनरण्य राजा मोक्षमें गया । (१०४) अनन्त बल, वीर्य एवं शक्तिसे सम्पन्न तथा संयम, तप एवं नियमका धारक और सूर्य जहाँ अस्त होता वहीं ठहरनेवाला अनन्तरथ साधु भी पृथ्वीपर विहार करने लगा । ( १०५ ) For Private & Personal Use Only [ २२.९५ १०१ ॥ अरुस्थल में सुकोशल राजा था । उसकी पत्नी अमृतप्रभाको पुत्री अपराजिता नामकी थी । (१०६) वह दशरथको दी गई । बड़े आडम्बरके साथ उसके द्वारा वह ब्याही गई । कमलसंकुलपुर में सुबन्धुतिलक नामका राजा था । (१०७) उसकी महादेवी मित्रा तथा सुन्दर रूपवाली पुत्री कैकयी थी। उसके साथ दशरथने विवाह किया और उसका नाम सुमित्रा रखा गया । (१०८) इस प्रकार सम्यक्त्वसे भावित मतिवाला तथा देव एवं गुरुकी पूजा में निरत दशरथ युबतियोंके साथ महाराज्यका उपभोग करने लगा। (१०९) १. नियमरओ - प्रत्य• । www.jainelibrary.org

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