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पउमचरियं
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सबम्मि सुपडिउत्ते सिरिमालाभरणभूसियसरीरा । वरजुवइ - मन्तिसहिया, रायसमुद्दं समोइण्णा ॥ षासेमु चामराई, उबरिं पडिपुण्णनिम्मलं छत्तं । पुरओ य नन्दितूरं, घणगुरुगम्भीरसद्दालं ॥ दट्टूण तीऍ रूवं, जोबण- लायण्ण- कन्तिसंपुण्णं । वम्महसरेसु भिन्ना, बहवे ओयलयं पत्ता केई भणन्ति एवं कस्सेसा ललियजोबणापुण्णा । होही चरकल्लाणी, रूवपडाया इमा महिला ॥ अन्ने भणन्ति पुबं, जेण तवो सुविउलो समणुचिण्णो । तस्सेसा वरमहिला, होही कम्माणुभावेणं ॥ सबत्थसत्थकुसला, नामेण सुमङ्गला भणइ धाई । निमुणेहि कहिज्जन्ते, सिरिमाले खेयरनरिन्दे ॥ जो एस विवच्छो, धीरो रविकुण्डलो कुमारवरो । ससिकुण्डलस्स पुत्तो, तडिप्पभागव्भसंभूओ ॥ अम्बरतिलयाहिवई, वरेसु एयं मणस्स जइ इट्ठो । माणेहि सुरयसोक्खं, मयणेण समं रई चेव ॥ अन्नो विएस सुन्दरि, लच्छीविज्जंगयस्स वरपुत्तो । रयणपुरस्स् य सामी, नामं विज्जासमुग्धाओ || एयरस पास लग्गो, वज्जसिरीगब्भसंभवो एसो । वज्जाउहस्स पुत्तो, वज्जाउहपञ्जरो नामं ॥ अह मेरुदत्तपुत्तो, सिरिरम्भागन्भसंभवो एसो । मन्दरकुञ्जहिवई, नामेण पुरंदरो राया ॥ माणसवेगस्स सुओ, वेगवईनन्दणो वरकुमारो | नागपुरसामिओ सो, पवणगई नाम विक्खाओ ॥ अन्य बहू, सिरिमाले ! पेच्छ खेयरनरिन्दे । कुल विभव - रूव - जोबण- विज्जासयरिद्धिसंपन्ने ॥ एयाण नरवईणं, जो सो हिययस्स वल्लहो तुज्झं । तस्स य करेहि वरतणु ! मालं कण्ठम्मि सिरिमाले ! ॥ अवलोइऊण सबे, विज्जाहरपत्थिवे पयत्तेणं । बालाऍ मणभिरामा, किक्विन्धि पाविया दिट्ठी ॥ हंसगइगमणमणहर-लीलाए कविवरस्स गन्तुणं । सा छेयसिप्पियकया, माला कण्ठम्मि ओलइया ॥ सब भलीभांति व्यवस्थित हो जाने पर आभरणोंसे अलंकृत शरीरवाली तथा सुन्दर युक्ती सखियोंके साथ श्रीमाला राजाओंरूपी समुद्र में अवतीर्ण हुई । (१६०) उसकी दोनों भोर चँवर डुलाए जा रहे थे, ऊपर विशाल एवं निर्मल छत्र था, आगे मेघ के समान अतिगम्भीर शब्द करनेवाले मंगलवाद्य बज रहे थे । (१६१) यौवन एवं लावण्यकी कान्तिसे परिपूर्ण उसका रूप देखकर मन्मथके बाणोंसे विद्ध बहुतसे राजा बेचैनी महसूस करने लगे । (१६२ ) उनमें से कुछ कहने लगे कि ललित यौवन से पूर्ण तथा स्त्रियोंकी रूपपताका जैसी यह कल्याणी किसकी पत्नी होगी ? (१६३) तो दूसरे कहने लगे कि पूर्वभवमें जिसने खूब तप किया होगा उसीको कर्मके फलस्वरूप यह उत्तम महिला प्राप्त होगी । (१६४) सभी अर्थ एवं शास्त्रों में कुशल सुमंगला नामकी धात्रीने कहा- 'हे श्रीमाले ! अब मैं इन विद्याधर राजाओंके विषय में कहती हूँ, उसे तुम ध्यानपूर्वक सुनो । (१६५ ) यह जो विशाल छातीवाला तथा धीर रविकुण्डल नामका कुमार है वह तडित्प्रभाके गर्भ से उत्पन्न हुआ है और शशिकुण्डलका पुत्र है । (१६६) यदि तुम्हारे मनको यह अम्बरतिलक का अधिपति ( अर्थात् रविकुण्डल ) इष्ट प्रतीत होता हो तो तुम इसका वरण करो और मदनके साथ रतिकी भांति सुरत-सुखका अनुभव करो । ( १६७) हे सुन्दरि ! यह दूसरा लक्ष्मी एवं विद्यांगदका विद्यासमुद्घात नामका पुत्र है और रत्नपुरका स्वामी है । (१६८) इसके समीपमें जो अवस्थित है यह वज्रश्रीके गर्भसे उत्पन्न तथा वज्रायुधका पुत्र है। इसका नाम वज्रायुधपंजर है । (१६९ ) श्रीरम्भाके गर्भ से उत्पन्न तथा मेरुदत्तका पुत्र और मन्दरकुंजाधिपति यह पुरन्दर नामका राजा है । (१७०) मानसवेग और वेगवतीका पुत्र तथा नागपुरका प्रख्यात राजा यह पवनगति है । ( १७१) हे श्रीमाले ! इन तथा कुल, वैभव, रूप, यौवन, विद्या, भाव एवं ऋद्धिसे सम्पन्न दूसरे बहुतसे विद्याधर राजाओंको तुम देखो । (१७२) हे वरतनु श्रीमाले ! इन राजाओं में से जो तुम्हें प्रिय हो उसके गले में माला डालो । ( १७३) सब विद्याधर राजाओंको बराबर ध्यान से देखकर उस कन्या की मनोरम दृष्टि faoकन्धि पर ठहरी । (१७४) निपुण शिल्पी द्वारा निर्मित उसने हंसकी गति के समान मनोहर लीलाके साथ afपवर किष्किन्धके पास जाकर उसके गलेमें माला आरोपित की । (१७५)
१. सरोगताम् । २. तस्स करेहि तणुम्मि मालं प्रत्य० । ३.
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