________________
७.३२]
७. दहमुहविज्जासाहणं
सोऊण वयणमेयं, माली पडिभणइ गबिओ हसिउं । किं दोढीभयभीओ, निययगुहं केसरी रियइ ? ॥ १८ ॥ नन्दणवणे महन्ता, जिणालया कारिया रयणचित्ता । अणुहूयं पवरसुह, दाणं च किमिच्छियं दिन्नं ॥ १९ ॥ समलंकियं च गोतं, जसेण ससिकुन्दनिम्मलयरेणं । जइ होइ समरमज्झे, मरणं तो किं न पज्जतं ॥ २० ॥ एवं सुमालिवयणं, अवगण्णेऊण पत्थिओ माली । वेयड्नगवरिन्दे, रहनेउरचक्कवालपुरं ॥ २१ ॥ सोऊण रक्खसबलं, समागयं लोगपालपरिकिण्णो । एरावणमारूढो, नयराओ निग्गओ इन्दो ॥ २२ ॥ अन्नोन्नरहसपेलण-रहवर-गय-तुरयनिवह-पाइक्कं । निक्खमइ इन्दसेनं, रणरसपरिवड्डिउच्छाहं ॥ २३ ॥ रक्खस-पवंगवीरा, सुरसेन्नं पेच्छिऊण सन्नद्धं । बाणासणी मुयन्ता, आभिट्टा इन्दसुहडाणं ॥ २४ ॥ भज्जइ रहो रहेणं, निवडइ हत्थी समं गयवरेणं । तुरएण समं तुरगो, पाइको सह पयत्थेणं ॥ २५ ॥ सर-सत्ति-बाण-मोग्गर-फलिह-सिला-सेल्लआउहसएसु । खिप्पन्तेसु समत्थं, छन्ने गयणङ्गणं सहसा ॥ २६ ॥ सुरवइभडेहि एत्तो, रणरसउच्छाहवड्डियरसेहिं । रक्खसबलस्स पमुह, भग्गं चिय अग्गिम खन्धं ॥ २७॥ आलोडियं समत्थं, निययबलं पेच्छिऊण परिकुविओ। अह उढिओ य माली, सत्थोहजलन्तपज्जलिओ ॥ २८ ॥ सर-सत्ति-खम्ग-मोग्गर-चडक्कसरिसोवमेहि पहरेहिं । भग्गं सुरिन्दसेन्नं, मालिनरिन्देण संगामे ॥ २९ ॥ दठूण सवडहुत्तं, एज्जन्त रक्खसाहिवं इन्दो । सूरस्स पवओ इव, अवढिओ सत्थसिहरोहो ॥ ३० ॥ इन्दस्स य मालिस्स य, दुण्ह वि जुझं रणे समावडियं । बलदप्पगबियाणं, रणरस कण्डू वहन्ताणं ॥ ३१ ॥ छिन्दन्ति सरेण सरं, चक्कं चक्कण लाघवकरग्गा । विज्जाबलेण दोणि वि, जुज्झन्ति रणे समच्छरिया ॥ ३२ ॥
सुनकर दर्पयुक्त माली हँसकर कहने लगा कि क्या सूअरसे भयभीत होकर सिंह कभी अपनी गुफामें भी चकर लगाता रहता है१(१८) हमने रत्नोंके कारण विलक्षण प्रतीत होनेवाले बड़े बड़े जिनालय नन्दनवनमें बनवाये हैं। हमने उत्तम सुख भोगा है। इच्छित दान भी क्या नहीं दिया? हमने चन्द्रमा एवं कुन्द पुष्पसे भी अधिक निर्मल यश द्वारा गोत्रको अलंकृत किया है। यदि युद्धमें मरण हुआ, तो भी हमने क्या प्राप्त नहीं किया है?' (१९-२०) इस प्रकार सुमालीके वचनकी अवगणना करके मालीने उत्तम वैताठ्यपर्वतमें आए हुए रथनू पुर नगरकी ओर प्रस्थान किया। (२१)
राक्षससेनाका आगमन सुनकर लोकपालोंसे घिरा हुआ इन्द्र ऐरावत हाथी पर आरूढ़ होकर नगरसे बाहर निकला । (२२) एक दूसरेसे आगे निकल जाने की इच्छावाली तथा युद्धके रसमें बढ़े हुए उत्साहवाली इन्द्रको रथ, हाथी, घोड़े, तथा पैदल सेना बाहर निकली। (२३) राक्षस एवं वानरोंके वीर इन्द्र के सुभटोंकी देवसेनाको तैयार देखकर बाण एवं अशनि (वन अथवा शस्त्रविशेष) फेंकने लगे । (२४) रथसे रथ तोड़ा गया, तथा हाथीसे हाथी, घोड़ेसे घोड़ा
और पैदलसे पैदल गिराया गया। (२५) शर, शक्ति, बाण, मुद्र, स्फटिक शिला, शैल तथा दूसरे सैकड़ों आयुध फेंकनेसे सारा आकाशरूपी आँगन एकदम छा गया । (२६) इस तरफ रणरसके उत्साहसे बढ़े हुए जोशवाले इन्द्रके सैनिकोंने राक्षससैन्यका प्रमुख अग्रिम भाग छिन्न भिन्न कर दिया । (२७) अपने समग्र सैन्यको छिन्न-भिन्न देखकर माली कुपित हुआ और शस्त्र-समूहके तेजसे प्रज्वलित वह लड़नेके लिये उठ खड़ा हुआ । (२८) माली राजाने युद्ध में बाग, शक्ति, तलवार, मुद्गर तथा प्रचण्ड सूर्यके सरीखे आयुधोंसे सुरेन्द्र के सैन्यको तहस-नहस कर डाला । (२९) राक्षसराजको अपने समक्ष आते हुए देखकर शिखा तक शत्रोंसे ढंका हुआ इन्द्र सूर्यके पर्वतकी भांति प्रतीत होता था। (३०) बल एवं दर्पसे 'गर्वित तथा लड़ाईकी जिन्हें खुजलाहट हो रही है ऐसे इन्द्र एवं माली दोनोंके बीच रणभूमिमें युद्ध जम गया। (३१) हाथोंकी चपलतासे युक्त वे एक-दूसरेके बाणको बाणसे तथा चक्रको चक्रसे काटने लगे। इस तरह मत्सरयुक्त वे दोनों विद्याबलसे रणमें जूझ पड़े । (३२) इसके पश्चात् क्रोधमें आकर माली राजाने जलती हुई एक घोर शक्तिद्वारा इन्द्रके
१. दाढि:-शूकरः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org