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भासदेवी अपने काम पर नली गयीं।
एचलदेवी काफी बृद्ध थीं। उन्हें शान्तलदेवी की रीति और संयम पर अडिग विश्वास था। फिर भी उनका मन नहीं मानता था। हेगगड़तीजी को बुलवाकर आत्मीयता से उनसे बातचीत की। माचिकब्बे के निर्मल मन में ऐसे विचारों का भान तक नहीं था।"
"तब तो उस लड़की ने सन्निधान पर कुछ जादू चला दिया होगा--यही लगता है।" माचिकब्धे ने कहा। अपनी बेटी के लिए सौत, इसे स्मरपा करने के लिए भी वह तैयार नहीं थी।
"अब क्या करेंगी?" एचलदेवी ने प्रश्न किया।
"मालिक से यह बात कहूँगी। अम्माजी क्या कहती हैं ?" माचिकब्बे ने सवाल किया।
"ऐसा होने पर भी वह उसके लिए तैयार है, यही लगता है। वह बहुत ऊँचे स्तर पर सोचती है।"
"मतलब?"
"मन में ईा-असूया को स्थान न देकर अपने पति तक का दान करने के स्तर तक पहुंची है। एक स्त्री के लिए इससे बढ़कर और क्या हो सकता है, हेगड़ती जी? वह कभी विरोध नहीं करेगी। उसकी तरह का मानस सबका हो सकता है? दान का परिग्रह करनेवाले कल उसी को दूर कर दें तो...यही मेरी चिन्ता है। आप हेगड़ेजी से बात कीजिए।"
"सन्निधान से आप स्वयं बात करें तो कैसा रहेगा?"
"मैं तो तैयार हूँ। अम्माजी शायद यह नहीं चाहती, यही दिखता है। यह एक तरह की विचित्र समस्या है। इसमें अम्माजी की जीत होगी और छोटे अप्पाजी की हार--यही मुझे लगता है। उसे अपने पति पर जैसा अटल विश्वास है उतना ही गहरा प्रेम अपने पति का भी होना ही चाहिए-यह उसका दृढ़ विश्वास है।"
"वह सदा से ऐसी है। उसका आदर्श ही विचित्र है।" "अब क्या करना चाहिए?" "मालिक से बात करूँगी।" "वही कीजिए।" एचलदेवी ने सहमति प्रकट की।
हेग्गड़ती ने समय नहीं गंवाया। मौका मिलते ही उन्होंने अपने मालिक के सामने अन्तरंग की बात छेड़ दी। इस पर उन्होंने अपनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। उन्होंने कहा, "मंचि दण्डनाथ की राय पहले जान लेना चाहूँगा। बात बहुत बारीक है। इसमें सही और गलत के वाद-विवाद के लिए गुंजायश नहीं। अगर यह विवाह जबरदस्ती से होनेवाला हो तो उसकी रीति ही अलग है। उसके लिए
22 :: पट्टमहादेवी शान्तनः : भाग सीन