________________
[ १] सारसूत्रवृत्तियोगशास्त्रवृत्त्यादि ग्रंथानुसारेण सकाम-निर्जरा भवतीति संभाव्यते, यतो योगशास्त्रचतुर्थप्रकाशवृत्तौ सकामनिर्जराया हेतुबाह्याभ्यन्तरभेदेन द्विविधं तपः प्रोक्तम् , तत्र षटप्रकारं बाह्य तपो, बाह्यत्वं च वाह्यद्रव्यापेक्षत्वात्परप्रत्यक्षत्वात्कुतीथिकै हस्थैश्च कार्यत्वाच्चेति, तथा-लोकप्रतीत्वात्कुतीथिकैश्च स्वाभिप्रायेणासेव्यत्वाद् बाह्मत्वमिति। त्रिंशत्तमोत्तराध्ययन-चतुर्दशसहस्रीवृत्तौ एतदनुसारेण षड्विधबाह्यतपसः कुतीथिकासेव्यत्वंमुक्तं परं सम्यग्दृष्टि-सकामनिर्जरापेक्षया तेषां स्तोका भवति, यदुक्त भगवत्यष्टमशतकदशमो. द्देशके ( देशाराहएति ) बालतपस्वी स्तोकमंशं मोक्षमार्गस्याराधय. तीत्यर्थः, सम्यग्बोधरहितत्वातक्रियापरत्वाच्चेति, तया च मोक्षप्राप्तिनभवति स्तोकंकाशनिर्जरणात् भवत्यपि च भावविशेषायाद्वल्कलचीर्यादिवत्, यदुक्तम् ।।
आसंवरो अ, सेयंवरो अ बुद्धो य अहवअन्नो वा । समभावभावि अप्पा, लहेइ मुक्खं न संदेहो । xxx। अणुकंप काम निज्जर-बाल तवेदाणविणयविन्भंगे। संजोगविप्पओगे, वससूणव इड्ढि सक्कारे ॥
-सेन प्रश्नोत्तर ४ उल्लास अर्थात् चरक, परिव्राजक आदि मिथ्यादृष्टि जीष-कर्मक्षय के लिए तपादि अज्ञान कष्ट करते हैं तो उनके-तत्त्वार्थभाष्यवृत्ति, समयसारसूत्रवृत्ति, योगशास्त्रवृत्ति आदि ग्रन्थों के अनुसार सकाम निर्जरा होती है-सकाम निर्जरा की संभावना की जाती है। क्योंकि योगशास्त्र की चतुर्थ प्रकाश की टीका में सकाम निर्जरा के हेतुभूत् बाह्य और आभ्यन्सर भेद से दो प्रकार का तप कहा गया है। बाह्य तप छह प्रकार का कहा गया है।' यह अन्न आदि बाह्य वस्तुओं से सम्बन्धित होता है और दूसरों के द्वारा १--अनशनोनोदरिकावृत्तिसंक्षेपरसपरित्यागकायक्लेशप्रतिसंलोनता बाह्यम्
-जैन सिद्धान्त दीपिका ॥१६
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org