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[ २८२ ] ब्राह्मण, स्त्री, गर्भहत्या (बालहत्या) और गाय की हत्या के महापाप करने से नरक के अतिथि समान दृढप्रहारी आदि को योग ही आलंबन था।
(२४) चिलाती पुत्र जैसे पति साहसी दुरात्मा भी सक्रिया से मिथ्यात्व से निवृत्त होकर सम्यक्त्व ग्रहण किया । यह राजगृह नगर के धन्य सार्थपति की चिलाती नाम की दासी का पुत्र था। वह सिंह गुफा नामक चोरपल्ली का सेनापति था । साधु-संगति से मिथ्यात्व से निवृत्त होकर-सम्यक्त्व को प्राप्त किया । चारित्र का सम्यग रूप से पालन कर वे देवलोक में उत्पन्न हुए। कहा है
तत्कालकृतदुष्कर्म - कर्मठस्य . दुरात्मनः । गोप्ने चिलातिपुत्रस्य योगाय स्पृहयेन्न कः ॥
योग शास्त्र, प्रथमप्रकाश, एलो १३ अर्थात् कुछ ही समय पहले दुष्कर्म करने में अतिसाहसी दुरात्मा पिल्लाती पुत्र की रक्षा करने वाले योग की महिमा सबको करनी चाहिये।
(२५) बच्छड़े घराने वाले संगम ने (प्रथम गुणस्थानवर्ती बोय) सुपात्र दिया फलस्वरूप मनुष्य की आयु बांधी। कहा है
"पश्व संगमको नाम सम्पद वत्सपालकः । चमत्कारकरी प्राप मुनिदानप्रभावतः ॥"
-योगशास्त्र, प्रकाश ३ । ८८
अर्थात संगम नामक पशुपालक मुनि को दान देने के प्रभाष से चमत्कृत कर देने वाली अद्भुत संपत्ति प्राप्त की थी।
राजग्रह प्रखंड में छोटे से परिवार में धन्या नामकी संपन्न महिला रहती पी। उसके इकलौते पुत्र का नाम संगम था । बालक के हठाग्रह से माता ने उसके लिये खोर पकाई । मुनि का पदार्पण हुआ । उसने त्रिकरण शुद्धि से मुनि को सुपात्र दान दिया। मुनि को दान देने के प्रभाव से संगम का बीव काल समय में काल प्रातकर राजगृहनगर में गोभद्र सेठ की पत्नी भद्रा के गर्भ में आया । पुत्र का बम्म हुषा । शालीभद्र नाम रखा । ३२ कन्याओं के साप पाणि ग्रहण हुआ। अनुक्रम से संसार से विरक्ति हुई । शालीभद्र ने भगवान महावीर के पास दीक्षा
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