Book Title: Mithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 377
________________ [ ३५० ] तामलितापसादीनां तु शास्त्रेष्विन्द्रत्वादिप्राप्तिः कथिताऽस्ति, सा च सकामनिर्जरया भवति । -सेन प्रश्नोत्तर उल्लास ४ अर्थात् तामली तापस आदि ने सकाम निर्जरा के द्वारा इन्द्रत्व पद को प्राप्त किया। मिथ्यात्वी के कायक्लेश तथा प्रतिसंलीनता तप आदि से सकाम निर्जरा होती है। आगम में इन्हें बाह्य तप कहा है ।' तप रूप धर्म की आराधना मिम्मास्वी कर सकते हैं, आतापना, कायक्लेश आदि तप मिथ्यात्वी क्यों नहीं कर सकते हैं अर्थात् कर सकते हैं : आचार्य भिक्षु ने कहा है त्याग किया बिना हिंसा टालै तो पिण कर्म निर्जरा थावै जी अर्थात् प्रत्याख्यान किये बिना भी जो हिंसा से निवृत्त होसे हैं उनके भो निर्जरा होती है। देखा जाता है कि कतिपय मिथ्यात्वी बिना मतलब किसी को पोड़ा नहीं देते हैं, न सताते हैं क्या वे अहिंसा की अंशत: आराधना नहीं कर सकते। सामान्यतः यथाप्रवृत्तिकरण आदि के भेद होने से योग का बोज प्रस्फुटित होता है। इसके पूर्व मिथ्यात्वी के सकाम निर्जरा भी नाममात्र की होती है। महा मिथ्यात्व में ग्रसित मिथ्यात्वो के सकाम निर्जरा सम्भव नहीं है । कटुक मिण्यात्व की निवृत्ति होने से किंचित् मधुरता पनपती है। यह स्थिति अभव्य के भी १-अभिधान राजन्द्रकोष भाग ६। पृ० २७६ २-तरवार्थ भाष्य अ६।६ पर सिद्धसेनराणि टीका पृ० १६६ ३- तस्य सामान्येन यथाप्रवृत्तिकरणभेदत्वात्तस्य च योगबोजत्वानु पपत्तः। एतत्सर्वमेव सामरत्यप्रत्येकभावाभ्यां योगबीजं मोक्षयोजकानुष्ठान कारणम् । -योगदृष्टिसमुच्चय श्लोक २३-टीका ४-योगदृष्टि समुच्चय श्लोक २४-टीका Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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