________________
[ ३१० ]
अर्जुन माली बेसे महामिध्यात्वी के धनी व्यक्ति भी सद् संगत से संसार -रूपी समुद्र को पार किया ।
अर्जुनमाली राजगृह नगर का वासी था । वह मुद्गरपाणि यक्ष का भक्त था तथा वह नित्य प्रतिदिन एक स्त्री व छः पुरुषों की हत्या करता था । कहा है
तएण से अज्जुनए मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेण अण्णाइटठे समाणे रायगिहस्स नगरस्य परिपेरतेनं कल्ला कल्लि इत्थिसत्तमे - पुरिसे घायमाणे घाएमाणे विहरइ |
अंतगडदसाओ वर्ग ६ | अ ३। २७
अर्थात् अर्जुनमाली - मुद्गरपाणि यक्ष के आश्रित होकर प्रतिदिन छः पुरुष, सातवीं स्त्री को घात किया करता था ।
कालान्तर में वह अर्जुनमाली श्रमणोपासक सुदर्शन के साथ भगवान् महावीर को वंदन नमस्कार करने के लिए गया । वंदन- नमस्कार किया । भगवान् ने धर्म का उपदेश दिया । अर्जुनमाली को अच्छा लगा । सम्यक्त्व को ग्रहण किया, प्रव्रज्या ग्रहण की। सर्व कर्मों का अंत किया। छह मास श्रमण पर्याय का पालन किया । पन्द्रह दिन का अनशन आया । दीक्षा के दिन से ही अर्जुनमाली ने बेले बेले की तपस्या की । कहा है
पणसमयपदी आमरणंतं सहति अच्छिणिमीलयत्त सोक्खं ण लहंति
दुक्खाई । णेरइया ॥
Jain Education International 2010_03
;
अर्थात् नरकगति में प्राणी उत्पत्ति के समय से लेकर मरण पर्यंत दुःखों को सहन करते रहते हैं । वे विचारे आँख के टिमकार मात्र भी समय तक सुख नहीं पाते हैं । मिध्यात्व में मोही जीव परमात्मा को नहीं जानता है । श्री योगीन्द्र देव ने कहा है
मिच्छा सणमोहियउ परु अपाण मुणेइ । सो बहिरा जिलभणिउ पुण संसारु भमेइ ॥
- घम्मरसायण गा ७२
- योगसार टीका गा ७
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org