Book Title: Mithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 347
________________ [ ३२० ] को अशुद्धि दान न देकर शुद्ध-त्रिकरण -त्रिशुद्धि से दान दे । मिथ्याखो शुभ परिणाम युक्त भावना का चिंतन करे । कहा हैतल्लेश्यः -- तत्स्थशुभपरिणामविशेष इति भावना। -अणु प्रोगद्दाराई हारिभद्रीय टोका पृ० १९ अर्थात शुभपरिणाम विशेष को भावना कहते हैं । भावना से मिथ्यात्वी के कर्मों की विशेष निर्जरा होतो है। देखा जाता है कि कतिपय मिथ्यात्वी प्राणी मात्र को हित का उपदेश करते हैं ।' अच्छी धर्म को प्रभावना करते हैं । माप्त के वचन को आगम कहते हैं। आगम असत्य नहीं होते हैं क्योंकि माप्त राग-द्वेषमोह रहित होते हैं । मिथ्यात्वी आगम-वाणो का अनुसरण करे । ___ यद्यपि शुद्ध षोव द्रव्य का क्रोध परिणाम नहीं है। यह एक देशीय नय का विषय है । कम और नौ कर्म से बध को प्राप्त हुए जीव को क्रोध कर्म के उदय होने पर क्रोध रूप परिणति हो जाती हैं। यह क्रोष आत्मा के चारित्र गुण का विभाष परिणाम है । तीव्र क्रोध से मनुष्य कोटि वर्षों के तप का फल नष्ट कर सकता है । अत: मिथ्यात्वी क्रोधादि कषायों से अधिक से अधिक दूर रहे। कहा जाता है कि अखंड ब्रह्मचर्य महावत होने के कारण वारिषेण मुनि के स्वकोय सुन्दर स्त्रियों में भी पुवेद जन्य भाव उत्पन्न नहीं हुये और पुष्पडाल के कुरुप एकाक्षिणी स्त्री के निमित्त से पुवेद का तीव्र उदय होने पर राग-भाव हो गये थे। कर्म की गति बड़ी विचित्र है। मंद अज्ञानी थोड़ा विवेक से काम ले । सद संगति में ध्यान दें। जब मिथ्यात्वी के दर्शन मोहनीय का क्रमशः उदय घटता जाता है, ऐसे घटते-घटते जब दर्शन मोहनीय का उदय नहीं रहता है तब (१) हितोपदेशरूपत्वादुपदेशनमुपदेशा : - अणुओगद्दाराई-हारिगद्रीयवृत्ति पृ० २२ (२) आप्तवचनं आगम इति । -अणु ओगद्दाराई -हारि० टोका पृ० २२ (३) तत्वार्यश्लोकवार्तिकालंकार १० ११ (४) तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकार पृ० १२ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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