Book Title: Mithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 366
________________ [ ३३६ ] खाने को मिलते हैं, और मैं बसा श्रीमंत पा-इत्यादि तीन गारवों से युक्त है ऐसे जीव बाल मरण से मरते हैं। धन बाल मरणों से बहुत तोव पाप कर्मों का मास्रव होता है। वे बाल मरण जरा, मरण आदि संकटों में जीवों को फेंकते हैं। उपयुक्त वर्शन बाल मरण के रहस्य को मिथ्यात्वी सद्गुरु के पास समझे तथा समझकर उससे बचने का प्रयास करे । कहा जाता है कि मिथ्यात्वी धर्मानुष्ठानिक क्रियाओं में तत्पर रहता है वह यदि तेजो, पद्म, शुक्ललेश्या में मरण को प्राप्त होता है तो वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है। सुकृति की महिमा अद्भूत है। दुर्गति में पड़ते हुए मिथ्यात्वी को सद्गति में ले जाती है। रत्नत्रयमार्ग में दूषण लगाना, मार्ग का नाश करना, मिथ्या मार्ग का निरूपण करना, रत्नत्रयमार्ग में चलने वाले लोगों का बुद्धि भेद करना—ये सब मिथ्यादर्शन शल्य के प्रकार है।' ___ क्रोषांध होकर अपने शत्र को मैं उत्तर भव में मार सकूँ-ऐसी इच्छा रखना-जैसे पशिष्ठ मुनि ने उग्रसेन राजा का नाश करने की इच्छा की पो। पह वशिष्ठ मुनि मरकर फंस हुआ था। उसने अपने पिता का राज्य छोन लिया पा और उसको कारागृह में कैद किया था २-इस निदान शल्य से मिण्यात्यो बचने का प्रयास करे। आराधना आराधक के बिना नहीं होती, आराधक आराधना का स्वामी है । बीव के बिना आराधना नहीं होती है। कहीं-कहीं ग्रन्थों में चतुर्थ गुणस्थान में मरण प्राप्त होने वालों के लिए भी बाल मरण का व्यवहार किया है यह अविरति की अपेक्षा से है। किसो अपेक्षा (१) मार्गस्थ दूषणं, मार्गनाशनं, उन्मार्गप्ररूपणं, मार्गाप्ररूपणं, मार्गस्थानां भेदकरणं मिथ्यादर्शनशल्यानि । -मूलाराधना-१ । २५ टीका - (२) क्रोधाविष्टस्य स्वशत्रुवधप्रार्थना वशिष्ठस्येवोग्रसेनोन्मुलने । -मूलाराधना १ । २५ टीका (३) अविरदसम्मादिट्ठी मरंति बालमरणे चउत्थम्मि । -मूलाराधना १ । ३० ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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