________________
[ ३०४ ] यही तत्त्व वेदांत में अविद्या और विद्या शब्द के द्वारा कहा गया है।
अविद्या बंधहेतुः, स्यात् , विद्या स्यात् मोक्षकारणम् ।
ममेति . बध्यते जन्तु, न ममेति विमुच्यते ॥ पातज्जल-योग सूत्र और व्यास भाष्य' में ( संसार-संसार हेतु-मोक्ष, मोक्षोपाय ) भी यही तत्त्व हमें मिलता है। बौद्धदर्शन में चार आर्य का विवेचन मिलता है
(१) दु:खहेय, (२) समुदय-हेयहेतु, (१) मार्ग-हानोपाय या मोम-उपाय और (४) निरोध-शान या मोक्ष ।
योगदर्शन भी यही कहता है-विवेकी के लिये यह संयोग दुःख है और और दुःखहेय है । त्रिविध दुःखों के थपेड़ों से थका हुआ मनुष्य उसके नाश के लिए विज्ञासु बनता है।
अस्तु सत्य एक है-शोष पद्धपियाँ अनेक हैं। सत्य की शोध और सत्य का आचरण धर्म हैं। किसी भी सम्प्रदाय का व्यक्ति क्यों न हो-चाहे मिथ्यात्वी हो, चाहे सम्यक्त्वी हो- सत्य का आचरण करना धर्म है । संप्रदाय भनेक बन गये परन्तु सत्य अनेक नहीं बना । सत्य शुद्ध-नित्य और शाश्वत होता है। साधन के रूप में वह अहिंसा है ५ और साम के रूप में वह मोक्ष है। भगवान ने कहा है
जे निजिजण्णे से सुहे xxx पावे कम्मे जेब कडे, जेय कज्जइ, जेयकन्जिस्सइ सव्वे से दुक्खे ।
-भगवई ७।८ सू १६०
(१) व्यास भाष्य २०१५ (२) दुःखमेव सर्व विवेकिनः हेयं दुःखमनागतम् ।
-योग सूत्र २-१५-१६ (३) दुःखत्रयाभिघाताजिजज्ञासा तदपघातके हेतौ।
-सांस्य सूत्र १ क (४) अोवाइयं (३) सम्वे पाणा ण हतब्बा एस धम्मे, धुवे, णिपए, सासए।
-बायारो १-४-१
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org