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(७) चंडकोशिक सर्प ने भगवान को उत्तरचावलान्तर वनखंड में डसा । उस सर्प को शुभ-अध्यवसायादि से जाति स्मरण ज्ञान भी उत्पन्न हुआ । मिथ्यात्व भाव को छोड़कर - समता से वेदना को सहन किया । अंततः भक्त प्रत्याख्यान कर समताभाव से मरण को प्राप्त होकर सहस्रार देवलोक में उत्पन्न हुआ । उसे १५ दिन का भक्त प्रत्याख्यान आया ।
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चंडकोशिक सर्प जैसे उग्र क्रोधित ( मिथ्यात्व भाव को प्राप्त ) जीव भी सद्संगति में आकर आत्मोत्थान किया । अतः मिथ्यात्वी कुसंगति को छोड़कर सद्संगति में रहने की चेष्टा करे ।
(८) राजगृहनगर वासी नंदमणिकार - भगवान् महावीर का उपदेश सुनकर मिध्यात्वी से सम्यक्त्वी बना | श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये । कालान्तर में वही नंद मणियार — वीतराग देव के वचनों को सुनने का अवसर लम्बे समय तक नहीं मिलने के कारण सम्यक्त्व के पर्याय की अत्यन्त हानि होने afra के की अत्यन्त वृद्धि होने से मिध्यात्व को प्राप्त हुआ । उस मिथ्यात्व अवस्था में नम्द मणिधार मरण को प्राप्त हुआ; नंदा पुष्करणों में मेढक का भव प्राप्त किया । जैसे कि कहा है
तएां से नंदे मणियार सेट्ठी अणया कयाइ असाहुदंसणेण य अपज्जुवासणाए य अणणुसासणाए य असुरसूम्रणाए य सम्मन्तपज्जवेहिं परिहायमाणेहिं परिहायमाणेहिं मिच्छत्तपज्जवेहिं परिवढ्ढमाणेहि परिवड्ढमाणेहिं मिच्छत्त विष्पडिवण्णे जाए यावि होत्था । -नायाघम्मकहाओ श्रु १ । अ १३ । सू १३
अर्थात् ( श्रमणोपाशक ) नंद मणिकार श्रेष्ठी अन्यदा कदाचित् साधुओं के दर्शन नहीं होने से, साधुओं की पर्युपासना नहीं होने से, साधुओं का उपदेश नहीं सुनने से सम्यक्त्व के पर्याय की अत्यन्त हानि होने से और मिथ्यात्वके पर्याय की अत्यन्त वृद्धि होने से मिथ्यात्व को प्राप्त हुबा |
उस नंद मणियार के जीव को मेढक के भव में शुभलेश्यादि से जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ फलस्वरूप मिथ्यात्व भाव को छोड़कर सम्यक्त्व को प्राप्त
(१) आव० निगा ४६६ । मलयगिरि टीका
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