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स्थल पर खड़ा हो गया । कुछ समय के बाद उसके शरीर में बहुत जोर से खाज बाने लगी | खाज खुजलाने के लिये ज्यों ही उसने अपना पैर ऊंचा उठाया कि एक सुसला (खरगोश) जगह न मिलने के कारण उसके पैर के नीचे बैठ गया । हाथों ज्यों ही अपना पैर नीचे रखने लगा त्यों ही उसने अपने पैर के स्थल पर सुसले को देखकर पैर को वापस ऊँचा उठा लिया ।
उसने अपना पैर यह सोचकर ऊँचा रखा कि यदि में अपना पैर नीचे रख दूँगा तो मेरे द्वारा उस खरगोश की बात हो जायेगी । मेरी आत्मा हिंसा दोष से दूषित होगी । इसी अनुकम्पा से उसने अपना पैर ढाई दिन तक ऊँचा रखा । ढाई दिन के बाद जब अग्नि कुछ शांत हुई । तब सब जानवर वहाँ से अपनेअपने स्थान पर चले गये । बाद में ज्यों ही वह अपने पैर को नीचे रखने लगा
ही पैर अकड़ जाने के कारण वह गिर गया । उसके शरीर में असह्य वेदना उत्पन्न हुई । उसने ढाई दिन लगातार महाघोर वेदना समभाव से सहन की और फलस्वरूप मनुष्य को आयु बांधो । ढाई दिन पैर ऊँचा रखने से उसे इतनी बौ कर्म - निर्जरा हुई कि - "अनंत संसारी से परीत संसारी" होकर मनुष्य की आयु बांधी।' वह अपने आयुष्य को समाप्त कर, श्रेणिक राजा के घर में पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ- - जिसका नाम मेवकुमार रखा गया । उस मेघकुमार ने अपने पिछले भव - हाथी के भव में सदनुष्ठानिक क्रिया से संसार परीत किया तथामनुष्य का आयुष्य बांधा, लेकिन उस पिछले भव में उसको सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं हुई थी, जैसा कि सूत्र पाठ में कहा है
१ - तप णं तुमं मेहा । ताए पाणाणुकंपयाए ४ संसारे परितीकए मणुस्खा उप निबद्ध ।
-नायाधम्मकहाओ श्रु १ । अ० १ । सू १८२
२- समकत विण हाथी रा भव मझे रे, सुखला री दया पाली छे ताहि रे । सिण परत संसार कियों दया थकी रे, जोवों पेहलां अधेन गिनाता मांहि रे ।
- भिक्षु ग्रन्थ रत्नाकर, मिध्याती री निर्णय री ढाल २, गा ५२ । १० २६२
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