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[ २६४ ] किया, श्रमणोपासक बना। बेले-बेले की तपस्या करने लगा। अन्त में संथारा करके सौधर्म देवलोक में वैमानिक देव रूप में उत्पन्न हुआ।
(९) भगवान महावीर की मासीका पुत्र सिद्धार्थ बालतप से वाणव्यत्तर देव में उत्पन्न हुमा-कहा है
सिद्धत्थो सामिस्स माउस्त्रियापुत्तो बालतको कम्मेण वाणमंतरो जातो।
-आव०मूल भाष्य गा २११ । टीका
-त्रिषष्टिश्लाका० पर्व १० । सर्ग २। अर्थात् भगवान को मासीका पुत्र बालतप से वाणव्यंत्तर देव में उत्पन्न हुआ।
(१०) एक वृषभ अकाम निर्जरा के द्वारा शूलपाणि यक्ष-बाणव्यंकर देव रूप में उत्पन्न होता है। त्रिषष्टि इलाकापुरुषचरित्र में कहा है
कु द्धोऽकामनिर्जरावान् स गौमत्वोदपद्यत । व्यंतरः शूलपाण्याख्यो प्रामेऽत्रैवपुरातने ।।
- त्रिश्लाका० पर्व १० । सर्ग ३ । लो ६२ क्रोधित वृषम भी अकाम निर्जरा ( भूख, तृषा के परीषह से पीड़ित ) के द्वारा शूलपाणि यक्ष (वाणपन्तर देव) हुआ ।' अकाम निर्जरा भी देवगति के बंध का कारण है । कालान्तर में वही शूलपाणि यक्ष अपनी आत्मा की निंदा करता है अंततः सम्बवत्व को प्राप्त कर लेता है । २ सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय शुभ अध्यवसाय, शुभलेल्या होनी चाहिये ।
१-xx अकाम तहाए छुहाए मरिऊणं तत्थेव गामे अग्गुजाणे सूलपाणी जक्खो उप्पण्णो ।
--आव०नि गा. ४६१ । मलयटोका २-शलपाणिस्तदाकाऽनेकप्राणिक्षयं कृतम् ।
स्मरन्मुहुनिनिन्द स्वं पश्चात्तापाधिवासितः ॥१४४॥ सम्यक्त्व भृद्भवोद्विग्नः xxx ॥१४॥
--त्रिवलाका पर्व १. । सर्ग ३
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