________________
[ १५५ ]
११ - छद्मस्थ अवस्था में भगवान् ने पांचवां चतुर्मास भद्दिलपुर नगर में "किया । चतुर्मास समाप्त कर भगवान् कदली समाग्रम ग्राम, जंबु खण्डग्राम सुबक ग्राम, कृपिका ग्राम, वैशाली नगरी, ग्रामक ग्राम होते हुए माघ मास में शालिशीष नामक ग्राम में पधारे। वहाँ उद्यान में भगवान् प्रतिमा में शुभ अध्यवसाय, अवधि ज्ञानावरणीय लोकप्रमाण अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ ।
स्थित थे । उस समय भगवान् को कर्म के क्षयोपशम आदि के कारण कहा है ।
छट्ठेण सालिसीसे विसुङमाणस्स लोगोही ।
--
- आव० नि गा ४८६. मलय टीका - x x x तदानीं च षष्ठेन - दिनद्वयोपवासेन तिष्ठतस्तीत्रवेदनामधि सहमानस्य शुभैरध्यवसायैर्विशुद्ध यमानस्य लोकप्रमाणोऽवधिरभूत् ।
अर्थात् भगवान् महावीर को शालिशीषं ग्राम में दो दिन की तपस्या में, शतादि की तीव्र वेदना को समता से सहन करने से, लोकप्रमाण अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ । कहा जाता है कि लोक प्रमाण अवधिज्ञान अनुत्तर विमानवासी देवों को होता है ।"
२ - मेघकुमार के जीव को - पूर्वभव (मेरुश्रम हस्ति ) के भव में मिथ्यात्व अवस्था में जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ
तपणं तव मेहा ! लेस्साहिं विसुज्झमाणीहि अज्झवसाणेणं सोहणेणं सुभेणं परिणामेणं तयावर णिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूर-मग्गण - गवेषणं करेमाणरस सग्निपुव्वे जाईसरणे समुपज्जित्था । -ज्ञातासूत्र अ० १ सू १७०
१ - विशेषात् कर्मक्षपणं धर्मध्यानदीप्यत । बभूव चावधिज्ञानं श्रीवीरस्वामिनोऽधिकम् ॥ अनुत्तरस्थितस्यैव सर्व लोकावलोकनम् ||
Jain Education International 2010_03
- त्रिश्लाका० पर्व १०१ सर्ग ३ | श्लो० ६२१, ६२२
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org