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[ १६७ । आचार्य भिक्षु ने निर्जरा पदार्थ को ढाल १ में कहा है
मिथ्याती रे यो जगन दोय अग्यांन छ, उतकष्टा तीन अग्यांन हो। देख उणो दस पूर्व उतकष्टो भणे, इतरो उतकष्टो खय उपसम अग्यान हो ॥१२॥
-मिक्ष ग्रन्थ रत्नाकर भाग १, पृष्ठ ४१ अर्थात् मिथ्यात्वी के कम से कम दो और अधिक से अधिक तीन अज्ञान होते हैं । उत्कृष्ट में देश-न्यून दस पूर्व पढ सके, इसना उत्कृष्ट क्षयोपशम अज्ञान उसको होता है । आगे कहा है
मत ग्यांनावरणी खयउवसम हूआं, नीपजे मत ग्यांन मत अग्यान हो। सुरत ग्यांनावरणी खयउपसम हुआ, नीपजें सुरत ग्यांन अग्यांन हो ॥१४॥ बले भणवो आचारांग आदिदे, समदिष्टी रे चवदें पूर्व ज्ञान हो। मिथ्याती उतकष्टो भणे, देस उणो पूर्व लग जाण हो ॥१५॥ अवधि ग्यांनावरणी खयउपसम हूआं, समदिष्टी पामें अवध ग्यांन हो। मिथ्यादिष्टी में विभंग नांण उपजें, खयउपसम परमाण जाण हो ॥१६॥ ग्यांन अग्यांन सागार उपयोग छ, दोयां रो एक समाव हो। करम अलगा हुआ नीपजे, ए खयउपसम उजल भाव हो ॥१८॥
-भिक्षुग्रन्थरत्नाकर भाग १, पृष्ठ ४१
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