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[ २२० ] अज्ञान (ज्ञान) रूप श्रुत सामायिक मात्र का लाभ होता है क्योंकि अभव्यात्मा मो ग्यारह अंग का अध्ययन कर सकती है।
जन परम्परागत यह भी मान्यता रही है कि कोई एक अभव्यात्मा पूर्व विद्या का भी अध्ययन कर सकती है। ___ मिथ्यात्वी श्रुत सामायिक के द्वारा भव रूपी अटवी से पार हो सकते है । जिस प्रकार ब्रह्मचर्य व्रत की सम्यग आराधना से भव रूपी समुद्र को पार किया जा सकता है उसी प्रकार श्रुतसामायिक की आराधना से मिथ्यात्वी सम्यक्त्व को प्राप्त कर भव रूपी समुद्र को पार कर सकते हैं। श्रुत सामायिक को आराधना करनी-कल्प वृक्ष, कामधेनु और चिंतामपि से भी बढ़कर हैं और अनुपम सुखको देने वाली हैं।
कहीं कहीं आगम में मिण्यात्वी श्रुत की आराधना के अधिकारी नहीं माने गये हैं वहाँ सम्यग सान और सम्यग दर्शन की अपेक्षा हैं। किस विषय का प्रतिपादन किस समय, द्रश, स्थिति, नियति आदि के अनुसार कहा गया हैं। यापक दृष्टि से अध्येता को चिंतन करना चहिए । एकांत आग्रह में दृष्टि सम्यग नहीं बन सकती है।
" सूत्र अर्थ और तदुभव भेद से श्रुत सामायिकके तीन भेद होते हैं अथवा अक्षर, संशी, सम, सादि आदि भेद से श्रुत सामायिक के अनेक प्रकार हैंकहा है
"अक्खर सण्णी सम्म साइयं खलु सपज्जवसियं च, गमियं अंगपविट्ठ" इत्यादिना प्रतिपादितादक्षरश्रुतानक्षरश्रुतादिभेदाद् बहुधा वा श्रुतसामायिकं भवति ।"
-विशेभा० गा २६७७-टीका अर्थात् अक्षर श्रुत, (अक्षरों द्वारा कहने योग्य भाव की प्ररूपणा करना ) अनक्षर श्रुत,संको श्रुत,(मनवाले प्राणी का श्रुत) सम्यगश्रुत, (सम्यग्दृष्टि का श्रुत) सादिश्रुप्त, सपर्यवसितश्रुत, गमिकश्रुत ( १२ वा अंग दृष्टिवाद । इसमें आलापक पाठ-सरीखे पाठ होते हैं-सेसं तहेव भाणियवं-कुछ वर्णन चलता है और बताया जाता है-शेष उस पूर्वोक्त पाठ की तरह समझना चाहिए । इस प्रकार एक सूत्र पाठ का संबंध दूसरे सूत्र पाठ से जुड़ा रहता है।)
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